पीलीभीत में संसदीय सीट से भाजपा के उम्मीदवार वरुण गांधी पर उत्तर प्रदेश सरकार ने रासुका लगा दिया है। इससे पूर्व उन पर हत्या का प्रयास और दंगा भड़काने की कोशिश का मुकदमा दर्ज किया गया था। उन मामलों में वरुण की जमानत पर सोमवार को सुनवाई होनी थी। रासुका लगाने से अब ये धाराएं गौण हो गई हैं। रासुका ऐसे व्यक्ति पर लगाई जाती है जिससे बड़े पैमाने पर जनता कि सुरक्षा को खतरा पैदा होता हो। तीन माह के भीतर यदि रासुका का अनुमोदन हो गया तो वरुण की जमानत एक साल तक नहीं हो पाएगी। यानी उन्हें साल भर जेल में रहना पड़ेगा। रासुका की जटिल प्रक्रिया से यदि वरुण उबरे भी तो वे चुनाव से पहले जेल से बाहर नहीं आ सकते। फिलहाल रासुका को उच्च न्यायालय में चुनौती देने की तैयारी की जा रही है। इस मामले को राज्यपाल के विचारार्थ भी भेजा जा सकता है। क्या वरुण गांधी से वाकई जनता कि सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया था? क्या किसी राजनीतिक व्यक्ति पर रासुका तामील की जा सकती है? देश में आपातकाल के बाद वरुण गांधी पहले राजनीतिक व्यक्ति हैं जिनपर रासुका लगाया गया है। रासुका से पहले लगाई गईं 6 धाराएं जिनमें हत्या का प्रयास यानी धारा 307 भी शामिल था, राज्य सरकार को पर्याप्त नहीं लगी थी। उल्लेखनीय है धारा 307 में भी वरुण की जमानत सीजेएम की अदालत में नहीं होती। इसके लिए उन्हें सेशन कोर्ट में याचिका दाखिल करनी पड़ती या फिर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ता। पीलीभीत में चुनावी भाषण से पूर्व वरुण गांधी पर ऐसे संगीन आपराधिक मामले कभी दायर नहीं किए गए थे लेकिन राज्य सरकार को लोकसभा के इस नौजवान प्रत्यासी से प्रदेश की जनता कि सुरक्षा को खतरा महसूस हुआ और उसने समस्त लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करते हुए उसके खिलाफ ऐसा क्रूर कदम उठाया जिसकी कल्पना भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में कतई नहीं की जा सकती थी। कोई तानाशाह ही ऐसा कर सकता था। आखिर मुख्यमंत्री मायावती ने वरुण गांधी के खिलाफ ऐसा अलोकतांत्रिक कदम क्यों उठाया...मीडिया में इस तरह की खबरें आने लगी थी कि भाजपा बतौर स्टार प्रचारक वरुण गांधी का उपयोग करने वाली है। पीलीभीत की सभा में अपने पहले भाषण के बाद चुनाव आयोग, मीडिया और विपक्षी नेताओं ने जाने-अनजाने वरुण गांधी को ‘स्टार’ बना भी दिया था। उत्तर प्रदेश की जनता में उनकी लोकप्रियता आसमान छूने लगी थी। राज्य सरकार को अपने खुफिया सूत्रों से भी इस बात की सूचना मिली होगी कि वरुण गांधी के प्रचार से राज्य में चुनावी फिजा बदल सकती है और भाजपा को अपेक्षा से अधिक सीटें मिल सकती हैं। हो सकता है इस आंकलन और सूचना ने मुख्यमंत्री को इस तरह की क्रूर और चरमपंथी कदम उठाने के लिए विवश कर दिया हो ताकि वरुण गांधी भाजपा का प्रचार कर ही न सकें, लेकिन यह दांव उलटा भी पड़ सकता है। वरुण और भाजपा के प्रति जनता कि सहानुभूति बढ़ सकती है जैसे 1977 के लोकसभा चुनाव में आपातकालीन अत्याचारों के खिलाफ जनता में ऐसी लहर पैदा हुई कि कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया। वरुण गांधी पर रासुका लगाने का एक और उद्देश्य हो सकता है- ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम वोट हथियाया जाए। सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाता मुलायम सिंह के साथ थे लेकिन बाबरी मस्जिद विध्वंस के गुनहगार माने जा रहे कल्याण सिंह से दोस्ती के बाद मुलायम सिंह के प्रति मुसलमानों के मन में नफरत पैदा हो गई है और लाख प्रयासों तथा सफाई देने के बावजूद राजनीतिक प्रेक्षकों को नहीं लगता कि इस चुनाव में सपा के साथ होंगे। सपा से बिदके मुस्लिम मतों को हथियाने का प्रयास बसपा भी कर रही है और कांग्रेस भी। पीलीभीत में वरुण गांधी के चुनावी भाषण और उनकी सभाओं में उमड़ी भीड़ ने गैर-भाजपाई खेमे में हलचल पैदा की थी। कांग्रेस ने वरुण की तीखी आलोचना की थी और उनके भाषण को सांप्रदायिक विद्वेष पैदा करने वाला बताया था। कुछ नेताओं की प्रतिक्रियाएं मुसलमानों को खुश करने वाली थी। उनका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय की सहानुभूति प्राप्त करना था। इस उद्देश्य को एक हद तक चुनाव आयोग ने पूरा किया, फिर बसपा क्यों पीछे रहती- जिसके पास उत्तर प्रदेश की सत्ता का बल था। बसपा सरकार ने पहले वरुण गांधी पर संगीन धाराएं लगाईं फिर उससे कई कदम आगे जाकर उन पर रासुका तामील कर दी। अब मुख्यमंत्री इस बात से जरूर संतुष्ट होंगी की वरुण पर रासुका के बाद मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव बसपा की तरफ अवश्य हुआ होगा। मुख्यमंत्री का यह कदम देश की वोटकामी राजनीति की चर्मोत्कर्ष है। उनका खुफिया तंत्र चाहे जो रिपोर्ट दे लेकिन जनता अच्छी तरह समझ रही है कि इस सारे खेल का एकमात्र उद्देश्य मुस्लिम मत बटोरना ही है यानी यह सब वोट की राजनीति के चलते ही संभव हो पाया है। बहरहाल वरुण पर रासुका उन्हें चुनाव लड़ने से नहीं रोकता और भाजपा ने एलान भी कर दिया है कि वरुण उसके उम्मीदवार रहेंगे। भाजपा नेता रासुका को एक राजनीतिक कदम मान रहे है और पूरे प्रदेश में इसे भुनाने की तैयारी में जुट गए हैं। वरुण की मां मेनका गांधी ने इसे वरुण को अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में घेरने की साजिश करार दिया है और कहा है कि हम लोग इससे जरा भी विचलित नहीं हैं। पीलीभीत को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है। वरुण के साथ जो कुछ हुआ है उसका प्रदेश की जनता पर असर देखने के लिए हमें चुनाव परिणाम की प्रतीक्षा करनी होगी।
मंगलवार, 31 मार्च 2009
रविवार, 29 मार्च 2009
ये कैसा इंसाफ?
तीन खबरें लगभग एक साथ पढ़ने को मिली । समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को क्लीन चिट दे दी। मुलायम पर मैनपुरी की महिला जिला अधिकारी को धमकाने का आरोप था। उसकी शिकायत स्वयं जिला अधिकारी ने सबूतों के साथ चुनाव आयोग को भेजी थी। आयोग ने विचार विमर्श के बाद उसमें कोई आपत्ति जनक चीज नहीं पाई। जिससे मुलायम को आचार संहिता के उल्लघंन का दोषी पाया जाए। लिहाजा, मुलायम को क्लीन चिट दे दी गई। दूसरी घटना के मुताबिक पूर्व केंद्रीय मंत्री और इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार जगदीश टाइटलर को 1984 के सिख विरोधी दंगे में लिप्त रहने के आरोप से बरी कर दिया गया है। मामले की जांच कर रही सीबीआई को टाइटलर के खिलाफ 'ठोस सबूत' नहीं मिला है जिसके आधार पर उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सके। सीबीआई ने कहा है कि कैलिफोर्निया के दो सिखों जसवीर सिंह और सुरिंदर सिंह के इन आरोपों में कोई दम नहीं है कि जगदीश टाइटलर ने 1984 के दंगों में हिंदुओं को सिखो पर हमले के लिए उकसाया था। सीबीआई ने दिल्ली की कड़कड़डूमा स्थित मेट्रोपोलिटन अदालत में इस मामले से जुड़ी अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश की है। यह रिपोर्ट दस गवाहों के बयानों पर आधारित है। कांग्रेस द्वारा जगदीश टाइटलर को लोकसभा का उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा की सिख संगठनों ने कड़ी आलोचना की थी। इन्ही आलोचनाओं के बीच सीबीआई प्रमुख ने गृह मंत्री पी चिदंबरम से मुलाकात की थी, जिसकी माकपा ने कड़ी निंदा की थी। इस मामले की सुनवाई अदालत में होनी है। अदालत सीबीआई की रिपोर्ट पर विचार करेगी। तीसरी महत्वपूर्ण घटना के अनुसार पीलीभीत से भाजपा के उम्मीदवार वरुण गांधी ने 28 मार्च को पीलीभीत की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था। अदालत ने उन्हें दो दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया। वरुण गांधी पर आरोप था कि उन्होंने पांच मार्च को पीलभीत की एक सबा मे भाड़काऊ भाषण दिया। इस भाषण की सीडी इलेक्ट्रानिक मीडिया ने 16-17 मार्च को प्रमुख्ता से दिखाया जिसे चुनाव आयोग ने संज्ञान में लिया और भाजपा को सलाह दी कि वो वरुण गांधी को उम्मीदवार न बनाए। यानी आयोग ने सीडी में कही गई बातों को सही माना और वरुण गांधी को अपना पक्ष रखने का कोई मौका नहीं दिया। इस संबंध में वरुण का कहना है कि उनके भाषण को जो सीडी तैयार की गई है उससे छेड़छाड़ की गई है। उनकी बातों को संदर्भ से अलग करके दिखाया गया है। वरुण को उनके इस सवाल का जवाब आज तक नहीं मिला कि पांच मार्च को दिए गए उनके चुनावी भाषण की सीडी 16-17 मार्च को मीडिया ने क्यों दिखाया। उनके भाषण और उसके प्रसारण के बीच 11 दिनों का अंतर क्यों था। बहरहाल वरुण गांधी के खिलाफ बरखेड़ा थाने में रिपोर्ट दर्ज की गई और पुलिस ने मामले क तहकीकात शुरू कर दी है। इस मामले में वरुण गांधी को किसी भी दिन गिरफ्तार किया जा सकता था इसलिए उन्होंने पीलीभीत की अदालत में आत्मसमर्पण करना उचित समझा। पुलिस वरुण को गिरफ्तार इसलिए नहीं कर रही थी क्योंकि उसे उपर से हरी झंडी का इंतजार था, और हरी झंडी इसलिए नहीं मिल रही थी क्योंकि वरुण को चुनावी लाभ मिलने की संभावना थी। वरुण ने स्वयं अदालत में हाजिर होकर सरकार के इरादो पर पानी फेर दिया और पीलीभीत की जनता का अपूर्व समर्थन तथा सहानुभूति अर्जित कर ली। अब उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार वरुण पर रासुका लगाने पर विचार कर रही है। वो इस अवसर को मुसलमानों के वोट के रुप में भुनाना चाह रही है। पीलीभीत में वरुण गांधी जब अदालत जा रहे थे तो उनके साथ करीब 25 हजार लोगों की भीड़ थी जिसे तितर बितर करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज और फायरिंग तक करनी पड़ी थी। राज्य सरकार वरुण पर रासुका लगाकर उनकी लोकप्रियता को मुस्लिम वोटों में तब्दील करना चाहती है। बहरहाल इन तीनो घटनाओं यानी मुलायम को चुनाव आयोग की क्लीन चिट, जगदीश टाइटलर को सीबीआई की क्लीन चिट और वरुण गांधी को चुनाव आयोग द्वारा अपराधी करार देने तथा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा रासुका लगाने की तैयारी करने जैसी कठोर कार्रवाई के बीच पक्षपातपूर्ण रवैये की गंध नहीं आ रही है? इन तीनों घटनाओं में केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जो रुख अपनाए गए या अपनाए जा रहे हैं। क्या वो निस्पक्षता और नैसर्गिक न्याय की कसौटी पर खरे उतर रहे हैं? जगदीश टाइटलर का नाम सिख विरोधी दंगों में उसी समय उभरा था जब दंगे हुए थे। देश का लगभग हर जागरुक नागरिक इस सच्चाई से इत्तफाक रखता था। लेकिन सीबीआई को उनके खिलाफ ‘ठोस सबूत’ नहीं मिले इसलिए उसने कांग्रेस के इस उम्मीदवार और पूर्व मंत्री को क्लीन चिट दे दी। कुछ ऐसा मामला मुलायम सिंह का भी है। उनके खिलाफ शिकायत एक जिलाधिकारी ने की जो महिला है। इस महिला अधिकारी की शिकायत को गंभीरता से लेने की बजाय चुनाव आयोग ने मुलायम सिंह को बरी कर दिया। जबकि इस शिकायत को महिला उत्पीड़न कानून के तहत संज्ञेय अपराध माना जा सकता था। दूसरी तरफ वरुण गांधी जैसे नौजवान उम्मीदवार के खिलाफ रासुका लगाने की तैयारी हो रही है। मान लिया कि वरुण गांधी ने भड़काऊं भाषण दिया था, तो क्या इसे उनकी पहली गलती मानकर क्षमा नहीं करना चाहिए। जब जगदीश टाइटलर जैसे जगजाहिर दंगाई और मुलायम जैसे महिला अधिकारी को धमकाने वाले वरिष्ठ नेता को उनके अपराधों से मुक्त किया जा सकता है तो वरुण गांधी को क्यों नहीं मुक्त किया जा सकता। एक तरफ तो माया सरकार मुख्तार अंसारी जैसे माफिया डॉन को अपना उम्मीदवार बना रही है। दूसरी तरफ वरुण गांधी के खिलाफ रासुका लगाने की तैयारी कर रही है। क्या यही न्याय है? जो मीडिया वरुण गांधी के मामले में चीख पुकार मचा रही है। उसने बाकी दो मामलो में चुप्पी साथ लेना जरुरी क्यों समझा? क्या ये मामले वोट की राजनीति से प्रेरित नहीं हैं।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)