मंगलवार, 29 दिसंबर 2009
दौलतमंद चौटाला परिवार
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के पास अकूत संपत्ति है। चौटाला और उसके परिवार ने 1993 से 2006 के बीच 80 से ज्यादा संपत्तियां जोड़ी हैं जो देश के विभिन्न इलाकों में फैली हैं। चौटाला परिवार के पास आधा दर्जन ट्रस्ट है, सोसाइटियां हैं और कंपनियां हैं। चौटाला के दो बेटे अजय और अभय चौटाला तथा उनकी पत्नियों के पास भी घोषित संपत्ति से कई गुना ज्यादा संपत्ति है। अजय औऱ अभय चौटाला के दो-दो बेटों ने भी जमकर संपत्ति बटोरी है। अजय और अभय चौटाला के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिए गए हैं। ओमप्रकाश चौटाला के खिलाफ कार्रवाई की मंजूरी मांगी गई है। मंजूरी मिलते ही उनके खिलाफ भी आरोप पत्र दाखिल कर दिया जाएगा। चौटाला परिवार ने जितनी संपत्ति घोषित की है उससे लगभग 80 करोड़ रुपए ज्यादा की संपत्ति उनके पास है। जिन अन्य राज्यों में चौटाला परिवार की संपत्तियां फैली हैं वहां की सरकारों से अनुमति मिलने के बाद उस परिसंपत्तियों को जब्त करने की कार्रवाई शुरु कर दी जाएगी। इन संपत्तियों को खंगालने का काम सीबीआई ने तीन वर्ष पूर्व शुरु कर दिया था। इससे आगे का काम संबंधित सरकारों से अनुमति मिलने पर निर्भर है। चौटाला परिवार ने दौलत कमाने का काम चौधरी देवी लाल के समय से ही शरु कर दिया था। राज्यों के ऐसे मुखिया उसे अपनी जागीर समझने लगते हैं और पुराने रजवाड़ों की तरह जनता से वसूले गए धन को अपनी निजी कमाई। वे उस धन का उपयोग जनता के हितों के लिए न करके चल अचल संपत्ति एकत्रित करने में जुट जाते हैं। भाषण कला में माहिर ऐसे नेता राज्यों को अपनी निजी जागीर समझते हैं और चाहते हैं कि यह जागीर उनके परिवार के पास ही रहे। जैसे उत्तर प्रदेश के नेता मुलायम सिंह यादव ने पूरे राज्य को अपनी निजी जागीर बना ली है। लेकिन ऐसे नेताओं का सामंतवादी चेहरा और सामंतवादी रुझान ज्यादा दिनों तक जनता की निगाहों से छिपा नहीं रहता। यह तिलस्म टूट ही जाता है। यह सामंतवाद लोकतंत्र को घुन की तरह खा रहा है। लगभग हर नेता अपनी कथित लोकप्रियता का लाभ उठाकर अपने परिजनों तथा पुत्र पुत्रियों को अपना उत्तराधिकार सौंप रहा है। यदि वह सिंहासन पर है उसके पुत्र या पुत्रियां सूबेदार तो है ही। देवी लाल जैसे वीपी सरकार में उप प्रधानमंत्री थे तभी उन्हें ओम प्रकाश चौटाला को हरियाणा सौंप देने की धुन सवार हो गई। उन्हें दिल्ली बुलाकर अपने कुछ सिपहसालारों की उपस्थिति में हरियाणा भवन में ताज-ओ-तख्त सौंप दिया। लेकिन पुत्र की ताजपोशी प्रधानमंत्री को इतनी बुरी लगी कि उन्होंने देवीलाल को उप प्रधानमंत्री पद से हटा दिया और उनका सारा खेल बिगड़ गया। हरियाणा शायद ऐसा पहला राज्य था जिसमें एक साथ तीन पीढियां सत्ता सुख ले रही थी। इसी नक्शे कदम पर मुलायम सिंह यादव भी चल रहे हैं लेकिन उनका तिलस्म भी टूटने लगा है। फिरोजाबाद के उपचुनाव में पुत्रवधू डिंपल यादव की पराजय इसका सबसे सही सटीक सबूत है। राजनेताओं के लिए राजनीति, दौलत, शोहरत, ग्लैमर, सामाजिक प्रतिष्ठा सबकुछ देने वाला अलादीन का चिराग है। यह चिराग उनके अंदर सोई हुई जन्म जन्मांतर की लालसा को पूरी कर देता है। बस एक बार सत्ता हाथ लग जाए। फिर देखिए उनका कौशल। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की तरह खजाने का दरवाजा खोने में न कोई हिचक न कोई झिझक और न कोई शर्म। बेशर्मी की हदें पार करने वाले ऐसे तमाम आरोपों को दरकिनार करते हुए बेहयाई से जनता के बीच जाकर उसकी भावनाएं उभारते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं वह देखते ही बनता है। जातिवाद, क्षेत्रवाद समाजवाद, जनसेवा, विकास आदि कुछ ऐसे आकर्षक शब्द हैं जिनके चुंबकीय शक्ति से अनपढ़ गरीब और भोलीभाली जनता खिंची चली आती है और अपने भाग्य की डोर ऐसे तिलस्मी, झूठे और जनविरोधी नेताओं के हाथों में सौंप देती है। यह सिलसिला तब तक चलता रहेगा जब तक लोग सुशिक्षित और जागरुक नहीं हो जाते।
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