शुक्रवार, 6 जून 2008

लम्पट बुश

दुनिया के सबसे सभ्य और धनी होने का दावा करने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति बुश यदि किसी देश का खुलेआम अपमान करते हैं तो उन्हें असभ्य, घमंड और लम्पट ही कहा जाएगा। हो सकता है कि भारत वासियों के लिए उन्होंने जिस 'भुक्खड़' शब्द का इस्तेमाल किया है उसका वो खुद मतलब नहीं जानते हों। लेकिन हम बता दें कि भारत एक ऐसा देश रहा है जिसके ऋषि-मुनि तपस्वी अन्न जल का त्याग कर तपस्या करते थे। उनकी संख्या हजारों में थी। ये परंपरा आज भी जारी है। हर घर में एक न एक महिला या पुरुष एक दिन का व्रत भी जरुर रखते हैं। यहां के लोग चना चबैना पर संतुष्ट रहने वाले हैं। इस जिंदगी को वो सुखद भी मानते हैं। धन और वैभव के लिए अगर भूख बढ़ी है तो वो उन्ही मुट्ठी भर लोगों में है जो पश्चिमी संपर्क में आए हैं।

भारत में बड़ी संख्या शाकाहारी लोगों की है। जबकि अमेरिका में ज्यादातर क्या लगभग सभी लोग मांसाहारी हैं। गाय, भैंस, सूअर वहां के डायनिंग टेबल का अभिन्न अंग है। भारत को ग्लोबल अनाज संकट के लिए जिम्मेदार बताने वाला अमेरिका इन पशुओं को अन्न का एक बड़ा हिस्सा खिलाता है। भारत का औसत किसान तीन हेक्टेयर जमीन में खेती करता है। जबकि अमेरिका में दस हेक्टेयर भूमि की उपज केवल पशु खा जाते हैं।

दुनिया के उत्पादक देशों में कच्चे तेल की कीमत लगातार बढ़ते जाने की वजह से अमेरिका जैविक ईंधन पैदा करने पर जोर दे रहा है। अमेरिका सहित लगभग सभी विकसित देश गेहूं की जगह अब मक्का और ईंख की खेती करने पर तुले हुए हैं। पेट्रोल के ताकि पेट्रोल के विकल्प के तौर पर जैविक ईंधन तैयार किया जा सके।

ये एक कड़वा सच है कि भारत में मध्य वर्ग के फलने फूलने के बावजूद खाद्यान्न की खपत कई सालों से लगभग स्थिर है। जबकि अमेरिका में सन २००३ से सन 2००७ के बीच ९४६ से बढ़कर १०४६ किलोग्राम प्रतिव्यक्ति सालाना हो गया है। मोटे तौर पर कहें तो अमेरिका में प्रतिव्यक्ति औसत खपत भारत से पांच गुना है। यही नहीं ये चीन का भी तीन गुना है। अब बुश बताएं कौन ज्यादा भुक्खड़ हुआ। भारत या अमेरिका?

अमेरिका को ये गलतफहमी दूर कर लेनी चाहिए कि दुनिया के कुछ देशों में गेहूं और चावल के लिए जो मारामारी मची हुई है वो भारत में आई खुशहाली की वजह से नहीं है। ये वही अमेरिका है जो भूखे देशों को अनाज देने की बजाय उसे समुद्र मे डुबो देता था। भारत जब अमेरिका के अनाज पर निर्भर था तब भी यहां अनाज के लिए कभी दंगे नहीं हुए। अब तो भारत अनाज का निर्यात भी करता है और जरुरत पड़ने पर आयात भी। भारत में एक वर्ग तेजी से उभर रहा है जिसकी अनाज पर निर्भरता तेजी से कम हो रही है। भारत में आ रही समृद्धि से विकसित देशों को चिंचित होने की जरुरत नहीं है। क्योंकि इस देश में अनाज की खपत कम ही हो रही है। वैसे भी गरीब लोग गेहूं, चावल, से अलग मोटे अनाजों, मक्का, चना
जौ जैसे खाने का इस्तेमाल करते हैं। बेबाक जुबां तो यही कहेगी - अमेरिका अपने यहां के अश्वेत और बेरोजगार भुक्खड़ों की चिंता करे।

कोई टिप्पणी नहीं: