बुधवार, 25 जून 2008

फिलहाल तो उत्तर प्रदेश मायावती का ही है।

उत्तर प्रदेश को ले कर विभिन्न राजनीतिक पार्टियां चाहे जो दावा करें लेकिन यह राज्य फिलहाल तो मायावती का ही लगता है। मायावती का एक साल का शासन काल इसकी गवाही देता है। राज्य की स्थिति में चौतरफा सुधार हुआ है, यह उत्तर प्रदेश की जनता अच्छी तरह महसूस कर रही है। कानून व्यवस्था की सबसे बड़ी खासियत यह है कि मुलायम सिंह यादव कि तरह मायावती अपनी पार्टी के अपराधियों को बचा नहीं रही हैं। उनके पास कोई मुख्तार अंसारी नहीं है जिसके अपराधों पर पर्दा डालने के लिए मुलायम ने हर हथकंडा अपनाया था। कानून की निगाह में सभी बराबर हैं, यह उसी दिन सिद्ध हो गया था जब मायावती ने मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही दिनों बाद अपनी पार्टी के सांसद उमाकांत यादव को अपने निवास से गिरफ्तार करवाया था। यही नहीं उन पर गैंगेस्टर एक्ट लगाया गया और वह अभी भी जेल में है। यादव कमजोर लोगों कि दुकानों पर बुल्डोजर चलवाने के बाद संरक्षण पाने कि आशा से मायावती के आवास पर गए थे लेकिन मायावती ने उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया। यही नहीं मायावती ने दो अपराधी मंत्रियों जमुना प्रसाद निषाद और आनंद सेन यादव तथा पार्टी के सचिव राम दक्षपाल को कानून के हवाले कर दिया। इसका जनता में अच्छा संदेश गया है। मुलायम सिंह यदि मुख्यमंत्री होते तो क्या करते, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है।
मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश को अपनी जागीर की तरह चला रहे थे। उनका पूरा परिवार सांसद या विधायक तो है ही, अमर सिंह सुपर मुख्यमंत्री की भूमिका में थे। उनकी बात टालने की हैसियत किसी में नहीं थी और वह अपने तथा अपने मित्रों के कल्याण में लगे हुए थे। उनकी भूमिका आज भी यथावत है। यह उन्हीं की देन है कि पार्टी का आम कार्यकर्ता मुलायम सिंह से दूर होता जा रहा है। वह सोचता है कि पुलिस की लाठियां खाने के लिए तो वह है लेकिन मलाई खाने के लिए मुलायम का परिवार और अमर सिंह तथा उनका कुनबा है। यही कारण है कि शिवपाल सिंह यादव का करो या मरो का आवाह्न फ्लाप हो गया। अब उनकी अपील पर कार्यकर्ता मरने के लिए तैयार नहीं है। शिवपाल को तो छोड़िए मुलायम के कहे का कोई असर कार्यकर्ताओं पर नहीं हो रहा। जो लोग सपा का समर्थन कर रहे थे उनका भी मोहभंग मुलायम से हो रहा है। मुलायम सिंह का जनाधार तेजी से खिसक रहा है। अमर सिंह कहते हैं कि अमिताभ बच्चन हमारे साथ हैं और अगले चुनाव में सपा का प्रचार करेंगे। अमिताभ तो पिछले विधान सभा चुनाव में भी टीवी पर सपा का प्रचार कर रहे थे लेकिन उसका असर मतदातओं पर कितना पड़ा हम देख चुके हैं। खबर है कि लखनऊ से सपा के टिकट पर शबाना आज़मी को चुनाव लड़ाया जाएगा। अमर सिंह को फिल्म इंडस्ट्री ज्यादा रास आती है। उन्हें सिने तारिकाओं के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता। चुनाव में शबाना आज़मी का क्या हस्र होगा, यह समय बताएगा।

कांग्रेस का जनाधार फिलहाल बढ़ता दिखाई नहीं दे रहा है। उसके पारम्परिक वोट सब तितर-बितर हो गए। जो बचे थे उसे रोज़मर्रा के इस्तेमाल के मूल्यों में वृद्धि ने और विमुख कर दिया है। विधान सभा चुनाव में ब्राहमण मतदाता बसपा कि तरफ झुके थे। लोक सभा चुनाव में वे कांग्रेस कि ओर पलटेंगे, इसकी उम्मीद नहीं के बराबर है। मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन कांग्रेस को मिल सकता है बशर्ते मनमोहन सिंह की सरकार महंगाई पर काबू पाने में समर्थ हो। दलितों का विश्वास जीतने का राहुल गांधी का अभियान किस हद तक वोट में बदल पाएगा, कहना कठिन है। अभी यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है कि गैर यादव पिछड़ा वर्ग सपा से विमुख हो कर किधर जाएगा। कांग्रेस के पास समर्पित कार्यकर्ताओं का भी अभाव है जो कार्यकर्ता हैं, उनकी हिम्मत जनता के पास जाने की नहीं पड़ रही है क्योंकि लगातार बढ़ती महंगाई का कोई सार्थक स्पष्टीकरण वे नहीं दे पा रहे हैं जो आम जन के गले उतरे। वह मनमोहन सरकार की कौन सी उपलब्धि ले कर जनता के पास जाएगा ? किस मुद्दे पर जनता को आकर्षित करेगा? पेट्रोलियम पदार्थों में वृद्दि का सबसे बुरा असर मध्य वर्ग पर पड़ा है। कांग्रेस के थोड़े बहुत मतदाता इसी वर्ग के हैं। मुसलमानों का समर्थन कांग्रेस को मिल सकता है क्योंकि मुसलमान कभी नहीं चाहेंगे कि भाजपा देश की सत्ता पर काबिज हो।
कांग्रेस गठबंधन की सरकार का एक मात्र विकल्प भाजपा गठवंधन है। जो पार्टियां भाजपा के गठबंधन में शामिल हैं उनका वजूद उत्तर प्रदेश में नहीं है। इसलिए सारा दारोमदार भाजपा पर ही है। कांग्रेस से मतदाताओं की नाराजगी का लाभ भाजपा को मिल सकता है। विधान सभा के चुनाव में बसपा को वोट देने वाले ब्राहमण लोक सभा चुनाव में भाजपा के पास लौट सकते हैं। क्योंकि बसपा ऐसी हालत में नहीं होगी कि केंद्र में सरकार बना सके। इस बात की पूरी संभावना है कि ठाकुर और बनिया मतदाता भी भाजपा के साथ होंगे यदि पिछड़े वर्ग के मतदाताओं में यह बात घर कर गई कि छोटे-मोटे जातिवादी दलों को दिया गया वोट निर्रथक होगा तो भाजपा को वोट दे सकते हैं।

विश्व हिन्दू परिषद मंदिर और गंगा को ले कर देशव्यापी आंदोलन चलाने की योजना तैयार कर रहा है। इस आंदेलन का मकसद हिन्दू मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में लामबंद करना है। लेकिन उत्तर प्रदेश का मतदाता इस बात को जेहन में रखेगा। हिमांचल और उत्तराखंड की भाजपा सरकारों में पेट्रो पदार्थों में कमी लाने से साफ इंकार कर दिया है। यही नहीं भारतीय संस्कृति का राग अलापने वाली उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने गंगा को जगह-जगह बांधने का कार्यक्रम तैयार किया है जिससे गंगा का रहा सहा अस्तित्व भी संकट में पड़ जाएगा। उसकी योजना है कि भूमिगत सुरंग द्वारा गंगोत्री से उत्तर काशी तक गंगा का जल प्रवाहित किया जाए। इस प्रवाह को जगह-जगह बांध कर बिजली पैदा की जाए। यदि यह योजना क्रियान्वित हुई तो इससे गंगा का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। गंगा से विशेष सांस्कृतिक धार्मिक लगाव रखने वाले उत्तर प्रदेश के मतदाताओं की भाजपा से नाराजगी स्वभाविक होगी। इसका असर चुनावों पर पड़े बिना नहीं रहेगा।

उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनावों के बाद सात सीटों के लिए उपचुनाव हुए हैं। पाँच विधानसभा और दो लोकसभा की सीटें थी। इन सभी सीटों पर बसपा की भारी मतों से विजय हुई। उसने सपा से भी सीटें छीनी और कांग्रेस तथा भाजपा के प्रत्याशियों की जमानतें जप्त हुई। ये उपचुनाव यदि लोकसभा आम चुनाव के कोई संकेत देते हैं तो कहना होगा कि कम से कम उत्तर प्रदेश में बसपा की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। मायावती के सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय नारे का जादू अभी जनता के सिर से उतरा नहीं है। गंगा की दुर्दशा की जिम्मेदारी भी मायावती के सिर नहीं मढ़ी जा सकती। इसके लिए कांग्रेस, जनता पार्टी और राजक सरकारें ही जिम्मेदार हैं और अब उत्तराखंड की भाजपा सरकार गंगा के बचे-खुचे अस्तित्व को मिटाने पर तुली है।

मायावती सरकार ने अपने एक वर्ष के कार्यकाल में ऐसा कोई कार्य नहीं किया है जिससे उसके दामन में कोई दाग लगा हो। जनता में कहीं किसी तरह का असंतोष दिखाई नहीं देता। मंहगाई को लेकर यदि असंतोष है तो उसका ठीकरा कांग्रेस के सिर ही फूटना है। बसपा का ग्राफ ऊपर रहने से विपक्षी दलों के सत्तालोभीयों का भगदड़ उसी की ओर है। ऐसे लोगों को शामिल किये जाने के बारे में बसपा को सतर्क रहना होगा। उसे नरेश अग्रवाल तथा अखिलेश दास जैसे नेताओं से बचना चाहिए था। इससे पार्टी के पुराने कार्यकर्त्ताओं में हताशा पैदा हो सकती है।

लोकसभा चुनाव नजदीक आने पर भले राजनीतिक समीकरण बदले फिलहाल तो उत्तर प्रदेश मायावती के ही हाथ में है।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

abhi mayavati ko kam se kam 10 saal tak U.P. ke Sarakar Chalani chahiye , jisase kafi badalav najar ayega , har ek area me.