मंगलवार, 12 मई 2009

केंद्र में नई सरकार-किंतु परंतु के साथ

15वीं लोकसभा के लिए पांचवें और अंतिम दौर के चुनाव 13 मई को संपन्न हो जाएगा। एक्जिट पोल पर चुनाव आयोग द्वारा लगाए गए प्रतिबंध से किसी पार्टी के बारे में दावे के साथ कोई भविष्यवाणी करना निहायत कठिन है। लेकिन संभावनाओं और अटकलबाजियों का दौर चल पड़ा है। देश की सबसे बड़ी पार्टियां कांग्रेस और भाजपा के प्रवक्ता क्रमश: यूपीए और राजग की सरकारें बनने के दावे कर रहे हैं। मीडिया विशेषज्ञों का आंकलन है कि दोनों पार्टियों में से किसी को लोकसभा में बहुमत नहीं मिल पाएगा। यह भी स्पष्ट रुप से नहीं कहा जा सकता कि दोनों प्रमुख पार्टियों में से किसे ज्यादा सीटें मिलेंगी हालांकि एक कांग्रेस परस्त समाचार पत्र कांग्रेस को बढ़त दिलाने में जुटा हुआ है। यदि इसकी बात मान लें तो कांग्रेस भाजपा से ज्यादा सीटें जीतेगी।

एक बात तो साफ है गठबंधन सरकारों के दौर में राष्ट्रपति और राज्यपालों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। राष्ट्रपति के सामने दो विकल्प होते हैं। एक तो यह कि वह सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करे और लोकसभा में बहुमत साबित करने के लिए समय दे। दूसरा विकल्प यह होता है कि राष्ट्रपति दोनों बड़ी पार्टियों से सरकार बनाने का दावा करने वाली पार्टी से सूची मांगते हैं। जिससे साबित हो सकते कि लोकसभा में उस पार्टी को बहुमत का समर्थन प्राप्त है। चूंकि मौजूदा राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल सत्तारुढ़ दल से संबद्ध रही हैं, इसलिए इसी बात की संभावना ज्यादा है कि यदि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस की एक सीट भी ज्यादा रही तो उसे ही सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें। भाजपा से पिछड़ने के बावजूद वह कांग्रेस को बहुमत जुटाने का समय दे सकती है। ऐसी स्थिति में दोनों ही बड़ी पार्टियां सहयोगी दलों का समर्थन जुटाने में लग जाएंगी।

पहले देखते हैं कि कांग्रेस के साथ मौजूदा समय में कौन सी पार्टी है। पिछली सरकार कांग्रेस ने वाममोर्चे के समर्थन से बनाई थी। इस बार वाम मोर्चा कांग्रेस यानी यूपीए के साथ नहीं है। लालू यादव और रामविलास पासवान यह कहकर कांग्रेस में संकट डाल चुके हैं कि प्रधानमंत्री का चुनाव यूपीए करेगा। सपा स्पष्ट कर चुकी है कि यूपीए को समर्थन के सवाल पर चुनाव परिणाम आने के बाद विचार किया जाएगा। द्रमुक यूपीए के साथ है लेकिन तमिलनाडु की अन्य छोटी पार्टियों के बारे में नहीं कहा जा सकता। महाराष्ट्र में शरद पवार स्वयं प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं। यदि तीसरा मोर्चा इस स्थिति में आया कि वह एक-दो पार्टियों का समर्थन लेकर सरकार बना सकता है तो शरद पवार तीसरे मोर्चे के साथ जा सकते हैं। यही हालत बसपा और लालू यादव की भी है। कह सकते हैं कि यूपीए इस वक्त बुरी तरह बिखरा हुआ है। उसे क्षेत्रीय दलों का समर्थन तभी मिलेगा जब वह सरकार बनाने के लिए आमंत्रित की जाएगी या राष्ट्रपति दोनों बड़े दलों को बहुमत जुटाने का समय देंगे।

यूपीए के मुकाबले राजग की स्थिति स्पष्ट है। उसके साथ जदयू, अकाली, शिवसेना, जैसी पार्टियां हैं। साथ ही उसे बीएसपी और अन्नाद्रमुक का भी समर्थन मिल सकता है क्योंकि द्रमुक से कांग्रेस का गठबंधन पहले से ही है। लेकिन इस बार तमिलनाडु में द्रमुक की स्थिति पहले से कमजोर रहेगी। राजनीतिक समीक्षक पंजाब, उड़ीसा, राजस्थान, केरल और बंगाल में कांग्रेस की स्थिति बेहतर मान रहे हैं। उत्तर प्रदेश में उसकी स्थिति पहले के मुकाबले अच्छी रहेगी। मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात और कर्नाटक में भाजपा बेहतर प्रदर्शन करेगी। पंजाब में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने का लाभ कांग्रेस को मिलेगा, इसमें दो राय नहीं है। लेकिन उत्तर प्रदेश में भी वह भाजपा से अच्छी स्थिति में रहेगी, इसकी संभावना नहीं के बराबर है। इस राज्य में सपा पहले की अपेक्षा कमजोर रहेगी। बसपा के कारण उसे झटका लगेगा लेकिन दोनों ही पार्टियों की सीटें लगभग बराबर रहने की संभावना है।

राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला है। जबकि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भाजपा की स्थिति ज्यादा मजबूत रहेगी। मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, बिहार में कांग्रेस के लिए खाता खोलना मुश्किल होगा। उड़ीसा में भाजपा और बीजद सीटें बांटेगी। आंध्र प्रदेश में फिल्म स्टार चिंरजीवी कांग्रेस को व्यापक क्षति पहुंचा रहे हैं। ऐसी स्थिति में इस बात की संभावना नहीं दिखाई देती कि कांग्रेस भाजपा पर बढ़त बनाने की हालत में होगी। केरल में अवश्य कांग्रेस को इस बार लाभ मिलेगा। तीसरा मोर्चा जब सरकार नहीं बना पाएगा तब उसमें भगदड़ मचेगी। ज्यादा संभावना यही है कि जयललिता, चंद्रबाबू नायडू, तमिलनाडु की अन्य छोटी पार्टिय़ां भी राजग के साथ हो जाएंगी।

मायावती की बसपा को यदि सरकार में शामिल होना स्वीकार न हो तो वह बाहर से राजग को समर्थन दे सकती हैं। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, वाममोर्चा उसके नेतृत्व में बनने वाली किसी भी सरकार को समर्थन देने के लिए तैयार नहीं होगा। यदि जोड़ तोड़ करने पर वह राजी होगा तो तृणमूल कांग्रेस के समर्थन से यूपीए को हाथ धोना पड़ेगा। दक्षिण या उत्तर पूर्व के जिन राज्यों में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है, वहां सीटें बहुत कम है जबकि भाजपा जिन राज्यों में मजबूत हैं वहां सीटें अपेक्षाकृत ज्यादा हैं। भाजपा को इसका लाभ मिलेगा।

दिल्ली में शीला दीक्षित का सौम्य व्यक्तित्व और उनकी लोकप्रियता का लाभ कांग्रेस इस बार भी उठाएगी। उनके मुकाबले विजय़ मल्होत्रा कहीं नहीं ठहरते। उड़ीसा में भी भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा फायदा मिलने की संभावना है। इस संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता कि राजग के पुराने साथी नवीन पटनायक एक बार फिर राजग के साथ हो लें। लेकिन इन सारी संभावनाओं के बीच एक बात खास तौर पर महत्वपूर्ण है कि देश में ऐसी पार्टियों की कमी नहीं है जो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष छवि बनाए रखना चाहती है। इस प्रवृत्ति का लाभ यूपीए उठा सकता है।

हम फिर दुहरा दें कि केंद्र में सरकार बनाने में राष्ट्रपति की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। बशर्ते भाजपा और कांग्रेस में से कोई पार्टी अकेले दम पर पूर्ण बहुमत के साथ लोकसभा में न पहुंच जाए। यह करिश्मा उत्तर प्रदेश में बसपा दिखा चुकी है।

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