गुरुवार, 14 मई 2009

लौह महिला ममता बनर्जी

बंगाल की शेरनी और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमों ममता बनर्जी ने स्पष्ट किया है कि जहां माकपा होगी वहां वो नहीं होंगी। मतलब ये कि यदि यूपीए सरकार माकपा के समर्थन से बनती है तो तृणमूल कांग्रेस न तो उसे समर्थन देगी। और नहीं उसमें शामिल होगी। इस बीच कांग्रेस ने अपना झुकाव लेफ्ट की तरफ दिखाया है। साथ ही लेफ्ट भी कांग्रेस को लेकर थोड़ी नरम हुई। हांलाकि माकपा के महासचिव प्रकाश करात कहने के लिए कई बार ये कह चुके हैं कि लेफ्ट कांग्रेस के नेतृत्व में बनने वाली सरकार का समर्थन नहीं करेगी। करात और लेफ्ट तीसरे मोर्चे का सपना संजोए हुए हैं। उसके मन में भी शंका है लेकिन फिर भी वो दुनिया से कहते हैं कि उन्हें पूरा विश्वास है कि तीसरे मोर्चे की सरकार बनेगी।

ममता बनर्जी ने कहा है कि यूपीए सरकार को माकपा के समर्थन की आश्यकता ही नहीं पड़ेगी। हमें और नेताओं का बातों पर भरोसा भले ही न हो। लेकिन ममता बनर्जी की इस बात पर पक्का यकीन है। इतिहास इस बात की गवाही दे रहा है। ममता और माकपा में मेलमिलाप बिल्कुल नामुमकिन है। बंगाल में माकपा काडर के अत्याचारों से ममता बेहद क्षुब्ध रही हैं। जब केंद्र में नरसिंह राव की सरकार थी और माकपा से मधुर रिश्ते बनाए हुए थी तब ममता इसका लगातार विरोध करती रहीं। उनके इसी विरोध के चलते माकपा कार्यकर्ताओं ने उनपर जानलेवा हमला कर दिया। नौबत यहां तक आ गई कि लोकसभा में नरसिंह राव सरकार के विरुद्ध लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के लिए ममता को स्ट्रेचर पर लाया गया। उस समय ममता ने केंद्र सरकार से बंगाल की आतताई वाम मोर्चे की सरकार के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। लेकिन नरसिंह राव ने उनकी मांग अनसुनी कर दी।

दरअसल नरसिंह राव को केंद्र में बने रहने के लिए माकपा की जरुरत महसूस हो रही थी। ममता पर क्रूर हमले की निंदा भी नरसिंह राव ने नहीं की। एक प्रधानमंत्री के नाते किसी तरह की कार्रवाई करने का आश्वासन भी ममता को नहीं दिया। नरसिंह राव के रवैये और कांग्रेस पार्टी के निकम्मेपन से ममता बेहद क्षुब्ध हुई और उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस के नाम से अलग पार्टी बना ली। ममता वाम मोर्चे की सरकार की जन विरोधी नीतियों का डटकर विरोध करती रहीं।

एक बार जब वह वाम मोर्चे की सरकार के खिलाफ अनिश्चितकालीन धरने पर बैठी थीं, तब माकपा काडर ने उनपर दुबारा जानवेला हमला किया। तीसरा हमला ममता की मां पर उस समय किया गया जब ममता घर पर नहीं थीं। लेकिन ममता तो अपनी शर्तों पर जीने वाली और अपनी शर्तों पर राजनीति करने वाली लौह महिला हैं, वह माकपा काडर की उदंडता. क्रूरता, और अमानवीयता के खिलाफ चट्टान बनकर खड़ी रहीं और बंगाल जैसे राज्य में जहां चप्पे-चप्पे पर माकपा काडर की मौजूदगी हो, ममता अकेले संघर्ष करती रहीं। उनकी दृढ़ता और उनका संकल्प उस समय भी नहीं डिगा जब उनके कुछ साथियों ने उनका साथ छोड़ दिया।

सिंगूर औऱ नंदीग्राम के किसानों को कुशल नेतृत्व दिया।। इन दोनों स्थानों में माकपा काडरों ने किसानों पर बेइंतहां जुल्म ढाए। सिंगुर के किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रही एक स्थानीय युवती को गायब कर दिया गया। उसका कुछ पता नहीं चला। सिंगुर के किसान टाटा की नैनो कार के कारखाने का विरोध कर थे जो उनकी उपजाऊ जमीन पर लगाया जा रहा था। अंतत: टाटा को अपना कारखाना हटाकर गुजरात ले जाना पड़ा। नंदीग्राम की कीमती और उपजाऊ जमीन बंगाल सरकार एक विदेशी कंपनी को सेज के लिए दे रही थी। वहां के किसान इसका विरोध कर रहे थे। यह गांव मुस्लिम बहुल है। माकपा काडरों मे गांव की महिलाओं के साथ बलात्कार किया। कई को जबरदस्ती उठा ले गए। कई किसानों की हत्याएं की। उनके घर जला दिए। गांव छोड़कर पुलिस की सुरक्षा में बनाए गए शिविरों में रह रहे किसानों को भी माकपा काडरों ने नहीं छोड़ा। वे शिविरों में घुसकर किसानों पर गोलियां बरसाते रहे।

बंगाल की पुलिस में सरकार ने बड़ी संख्या में अपने कार्यकर्ताओं की भर्ती की है वे जानबूझकर आंखे बंद किए रहे। इन अत्याचारों से किसान डिगे नहीं। उनके पीछे ममता बनर्जी की शक्ति थी। यहां भी किसान जीते। सरकार को सेज की योजना रद्द करनी पड़ी। माकपा काडरों द्वारा बाद तक तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर हमले किए जाते रहें।

बंगाल के लोग दुर्गा के रुप में देखते हैं। ममता की असीम शक्ति के सामने बंगाल सरकार बार-बार हारती रही। नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र के उप चुनाव में माकपा की शर्मनाक पराजय हई। पंचायत चुनावों में भी तृणमूल कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया। अब कांग्रेस और तृणूमूल कांग्रेस एक साथ लोकसभा में अपना दांव खेल चुकी हैं। वैसे दोनों पार्टियों के आने वाले नतीजों से वाम मोर्चे की नींद उड़ी हुई है। अनुमान है कि कम से कम 15 सीटें गठबंधन को मिलेंगी।

यदि ऐसा है तो मानना पड़ेगा कि वाम मोर्चे के पांव बंगाल की धरती से उखड़ रहे हैं। वाम मोर्चे को अगले विधानसभा चुनाव की चिंता सताने लगी है। ममता बनर्जी के लगातार बढ़ते चट्टानी कदमों को रोक पाने में वह अपने आपको असमर्थ पा रही है। तृणमूल कार्यकर्ताओं का उत्साह अत्याचारी माकपा काडरों पर भारी पड़ने लगा है। क्योंकि बंगाल की जनता कहीं न कहीं से माकपा से उब चुकी है। वो अब ममता के साथ खड़ी नजर आ रही है।

ममता ने ऐलान किया है कि इस बार वह राजद सरकार में शामिल नहीं होंगी। उनकी निगाह में भाजपा सांप्रदायिक पार्टी है। यह निर्णय ममता ने बंगाल के मुसलमानों को देखते हुए लिया है। जिनके समर्थन के बिना विधानसभा चुनावों में निर्णायक बढ़त नहीं हासिल की जा सकती है। यदि वाम मोर्च का समर्थन यूपीए ने केंद्र में सरकार बनाने के लिए लिया तो ममता यूपीए सरकार का समर्थन नहीं करेंगी।

राजग में शामिल होने की गलती वह दुहराएंगी नहीं। ऐसी हालत में वह क्या फैसला लेंगी ये देखना दिलचस्प होगा। बस कुछ दिन और इंतजार करना है।

1 टिप्पणी:

kumar prashant ने कहा…

मेरे नजर में प्रधान्मंत्री पद की हकदार ममता ही हैं ।मीडिया ने कई नमूनों को प्रधान्मंत्री पद का उम्मीदवार बताया पर ममता सबमें अच्छी हैं।ये हमारी पत्रकारिता का निम्न स्तर ही है जो आज सिर्फ अपना टी आर पी बढाने के अलावा कुछ नहीं सोचती।