
महाराष्ट्र के चुनाव ने सबसे ज्यादा किसी को धक्का पहुंचाया है तो वे हैं बाल ठाकरे। बाल ठाकरे जिस दिशा में चलकर राजनीति के इस धरातल पर पहुंचे थे। उसी दिशा में और उग्रता से चलते हुए हिंदी भाषी जनता के खिलाफ जहर उगलते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे ने 13 सीटें हासिल कर बाल ठाकरे और उनके बेटे उद्धव ठाकरे के कान खड़े कर दिए हैं। मनसे ने लगभग 30 सीटों पर शिवसेना को नुकसान पहुंचाया है। भाजपा और शिवसेना को कुल मिलाकर 90 सीटों से संतोष करना पड़ा। सरकार बनाने का इनका सपना धरा का धरा रह गया। राज ठाकरे जैसे जैसे आगे बढ़ेंगे भाजपा की यह दुविधा बढ़ती जाएगी कि शिवसेना और मनसे में से वह किसे चुने और कट्टर हिंदुत्व के इस धड़े को वह कैसे साधे कि महाराष्ट्र में उनकी जगह बन सके। उल्लेखनीय बात ये है कि महाराष्ट्र के गावों की बदहाल स्थिति तथा विदर्भ जैसे क्षेत्रों में किसानों की आत्महत्याओं के बावजूद भी भाजपा और शिवसेना ने मिलकर ऐसा सकारात्मक माहौल नहीं बनाया कि जिससे कि जनता उनपर भरोसा कर सके।
भाजपा के अंदर मचे घमासान से उसे फुर्सत ही नही है कि वह राजनीति का कोई सकारात्मक आंदोलन खड़ा करे औऱ जनता का विश्वास हासिल करे। शिवसेना की जमीन कट्टरता पर टिकी है। जिसका तीव्र प्रसार शहरों में ज्यादा होता है। इसलिए संपूर्ण महाराष्ट्र को वह अपना कार्यक्षेत्र बना पाएगी इसमें संदेह है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे जहर उगलने वाले नेता है। इसलिए उनकी सफलता भी तात्कालिक किस्म की ही है। वो बहुत आगे निकल कर और महाराष्ट्र की बहुलतावादी संस्कृति को समेट कर आगे बढ़ने की संभावना नहीं जगाते।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी कांग्रेस पार्टी के शऱद पवार ने भी जिस तरह समझदारी का परिचय देते हुए। मुख्यमंत्री का दारोमदार कांग्रेस पर छोड़ दिया। उससे संकेत मिलता है कि गठबंधन समझदारी से काम करेगा। और विकास कार्यों को अंजाम देता हुआ अपनी जड़े मजबूत करेगा।
अरुणाचल प्रदेश में भी कांग्रेस को जबरदस्त सफलता हासिल हुई है। साठ सीटों के विधानसभा में कांग्रेस ने 42 सीटें हासिल कर सभी दलों को किनारे लगा दिया है। भाजपा 6 सीटों का नुकसान उठा 3 सीटों पर अटक गई। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 4 सीटों का फायदा हुआ और वो 6 सीटों पर पर पहुंच गई। तृणमूल कांग्रेस ने भी पांच सीटों पर कब्जा जमाकर पश्चिम बंगाल के अलावा अरुणाचल में भी अपनी दस्तक दे दी।
हरियाणा का परिणाम सबसे दिलचस्प है। यहां इंडियन नेशनल लोकदल ने 32 सीटें जीतकर कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया है। 90 सीटों की विधानसभा में हांलाकि कांग्रेस को 40 सीटें मिली हैं। लेकिन उसे पिछले चुनाव के मुकाबले 27 सीटों का घाटा हुआ है। भाजपा 3 सीटों का नुकसान सहकर चार पर अटकी है। भजनलाल की पार्टी हरियाणा जन कांग्रेस को 6 सीटें हासिल हुई है। उन्होंने पिछली विधानसभा के बाद ही मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने पर अलग पार्टी का गठन किया था। भजनलाल ने सत्ता की बिसात पर हुड्डा को मात देने की पूरी कोशिश लेकिन 7 निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस का समर्थन कर इनका खेल बिगाड़ दिया। इस चुनाव में जहां इंडियन नेशनल लोकदल के ओम प्रकाश चौटाला को अच्छी खासी सीटें हासिल हुई वहीं भाजपा कमजोर पड़ी। इसका मतलब यही है कि ग्रामीण जनता पर कांग्रेस असर नहीं डाल सकी और उन क्षेत्रों में चौटाला अपना समर्थन वापस लाने में कामयाब रहे। भाजपा ने चौटाला को अकेले छोड़ दिया था। यदि दोनों पार्टियों के बीच बेहतर तालमेल होता तो आज चौटाला कांग्रेस को अपदस्थ कर सरकार बनाने की स्थिति में भी आ सकते थे।
हरियाणा में अपेक्षित प्रदर्शन न किए जाने के बावजूद कांग्रेस ने महाराष्ट्र और अऱुणाचल में जैसी सफलता हासिल की है उससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि वह मजबूती से अपने पांव आगे बढ़ा रही हैं। वह राष्ट्रीय विपक्ष के रुप में भाजपा को हर जगह कमजोर कर ही रही है क्षेत्रीय क्षत्रपों पर भी भारी पड़ रही है। धीरे धीरे वह समझदारी से कदम बढ़ाते हुए अपना जनाधार वापस लाने में लग गई है। क्षेत्रीय क्षत्रपों एवं भाजपा के नकारात्मक राजनीति के बीच उसने विकास का सकारात्मक नारा दिया है और अपने प्रांतीय नेताओं को भी जमीनी राजनीति करने का निर्देश दिया है। इसके लिए उसने स्वतंत्रता आंदोलन की अपनी विरासत से सीख लेते हुए सामान्य जन के दुख सुख में भाग लेने के लिए अपने कार्यकर्ताओं को दिशा निर्देश दिए हैं। बहुत समय तक लगातार सत्ता से जुड़े रहने के कारण कांग्रेस कार्यकर्ताओं को आरामतलबी की आदत पड़ गई थी। राहुल गांधी ने कांग्रेस की पुरानी राजनीतिक शैली को जागृत किया है।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गांधी जी स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ समाज सुधार के अनेक आंदोलनों एवं जनसेवा के अनेक कार्यक्रमों का संचालन भी करते रहते थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि राजनिती को जनसेवा का माध्यम बनना चाहिए और इसके लिए सत्ता की प्राप्ति जरुरी नहीं है बल्कि दलों को इसे निरंतर प्रक्रिया के रुप में अपनाना चाहिए। गांधी जी के बराबर तो शायद कांग्रेस सोच भी न सके लेकिन थोड़ा सा भी सीख लेकर राहुल गांधी ने गांवों के मन को छूने का अपना अभियान जारी रखा तो उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में तस्वीर बदल सकती है।
राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के बहराइच के एक गांव में रात बिताकर मायावती के कान खड़े कर दिए। उन्हें सचमुच लगने लगा कि यदि राहुल इसी तरह गावों की यात्रा करते रहे तो उनका जनाधार खिसक सकता है। इसिलिए वो आक्रामक भी बहुत ज्यादा हो गई हैं। झारखंड में भी राहुल ने दौरा किया औऱ जमीनी हकीकत जानने की कोशिश की। उन्होंने कहा भी कि विकास की रोशनी जमीनी स्तर पर बहुत कम पहुंची है औऱ नक्सल वाद को बढ़ाने में इसका बहुत बड़ा योगदान है। नक्सलवाद को खत्म करने के लिए विकास की रोशनी जमीन तक पहुंचाना होगा।
राहुल गांधी सोचसमझ कर ही उत्तर प्रदेश औऱ झारखंड का दौरा कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन वापस पाना कांग्रेस के लिए बेहद जरुरी है। लोकसभा में जनता ने अपेक्षा से अधिक सीटें देकर कांग्रेस का मनोबल भी बढ़ा दिया है। इधर सपा और बसपा की नकारात्मक राजनीति और प्रशासनिक भ्रष्टाचार ने जनता को त्रस्त करके रख दिया है। अब वह भी साफसुथरे प्रशासन एवं विकास की राजनीति को आगे बढ़ाने वाली सरकार चाहती है। इस स्थिति में कांग्रेस को फायदा होना स्वाभाविक है।
आने वाला दिसंबर भाजपा और कांग्रेस की स्थिति को और स्पष्ट कर देगा जब झारखंड विधानसभा के परिणाम सामने आएंगे। वहां जनता ने भाजपा को मौका दिया लेकिन खींचतान ही अधिक होती रही। राज्य अलग होने पर जैसी विकास की उम्मीद थी वैसा हुआ नहीं इस चुनाव में कांग्रेस उत्साहित है उसका मनोबल बढ़ा हुआ है वह लालू को भी किनारे करने का मन बना चुकी है। यदि अपने दम पर उसे झारखंड में सफलता मिल जाती है तो फिर उत्तर प्रदेश में भी उसका रथचक्र आगे बढ़ेगा और केंद्रीय सत्ता की चाभी पूरी तरह से उसकी हाथ में होगी।