केंद्र सरकार के 251 भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। ये आदेश केंद्रिय सतर्कता आयोग ने दिए हैं। इनमें रेलवे, सार्वजनिक बैंकों, बीमा कंपनियों, दिल्ली विकास प्राधिकरण और एमसीडी के कर्मचारी और अफसर ज्यादा हैं। इनके अलावा 8 अन्य अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति दे दी गई है। इनमें एक आइएएस अधिकारी, एक संयुक्त सचिव, एक पूर्व एमडी तथा एक आईपीएस अधिकारी शामिल है। इनमें 108 अफसर ऐसे हैं जिनके खिलाफ सख्त दण्डात्मक कार्रवाई की प्रकिया शुरू की जा चुकी है। इनमें 4 गृहमंत्रालय के कार्मिक शामिल हैं। 68 मामलों में प्रवर्तन निदेशालय ने कड़ी कार्रवाई की मंजूरी दी है। इनमें 14 कर्मचारी नेशनल एल्यूमिनियम कंपनी, 12-12 कर्मचारी रेलवे और सरकारी बैंकों, 5 जीवन बीमा के तथा 5 डीडीए के कार्मिक हैं।
देखने में सौम्य, साफ-सुथरी और ममता की मूर्ति लगने वाली शीला दीक्षित की सरकार भ्रष्टाचार में दूसरे नंबर पर है। पहले नंबर पर म्युनिसिपल कार्पोरेशन ऑफ दिल्ली यानि एमसीडी है जिसके कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के 4300 मामले विचाराधीन हैं। तीसरे नंबर पर है दिल्ली विकास प्राधिकरण और चौथे पर दिल्ली पुलिस। दिल्ली सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के 457 मामले चल रहे हैं। इसमें दिल्ली जल बोर्ड के 137 मामले भी हैं। दिल्ली विकास प्राधिकरण के 305 और दिल्ली सरकार के 133 अफसर विभिन्न मामलों में फंसे हुए हैं। बहुत से अफसर जांच पूरी होने से पहले ही अवकाश ग्रहण कर चुके हैं। यह जानकारी सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं के तहत उपलब्ध हुई है।
दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन के सतर्कता विभाग के मुताबिक उसके 3350 कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कुल 4299 मामले चल रहे हैं। दिल्ली पुलिस के विभिन्न अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ पिछले साल जनवरी महीने से ही 133 मामले विचाराधीन हैं। दिल्ली विकास प्राधिकरण के 300 कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले विचाराधीन हैं।
इनमें कुछ तो दो-दो दशकों से चल रहे हैं। यह हाल उस सरकार और उसके विभागों का है जो केंद्र की कथित ईमानदार सरकार की नाक के नीचे काम कर रही है और जो हाल के विधानसभा चुनाव जीत तक तीसरी बार सत्ता में आई हैं। कुछ साल पहले तक भारत दुनिया के भ्रष्टतम देशों में संभवत: सातवें पायदान पर था निश्चित रुप से यह एक दो कदम और आगे बढ़ा होगा।
भ्रष्टाचार क्यों बढ़ रहा है? इसका आकलन इस रिपोर्ट से भी किया जा सकता है। एक-एक अफसर और कर्माचारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई-कई मामले हैं। कुछ मामलों की जांच के बीस –बीस साल गुजर गए लेकिन जांच पुरी नहीं हुई। कुछ कर्मचारी रिटायर भी हो गए लेकिन जांच जारी है। जिनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं, जब उनके खिलाफ जांच ही पूरी नहीं होगी तो दंड कब और क्या मिलेगा?
दरअसल जांच करने वाले व्यक्ति और जांच करने वाली मशीनरी भी कम भ्रष्ट नहीं है। सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। चोर-चोर मौसेरे भाई हैं। जब दिल्ली सरकार की भ्रष्ट है तो उससे संबंध अन्य विभागों का भ्रष्ट होना लाजिमी है। जब नेता और मंत्री भ्रष्ट हैं तो नौकरशाही कैसे बची रह सकती है भ्रष्टाचार से। भ्रष्टाचार की जांच बीस बीस साल तक खिंचना क्या दर्शाता है? क्या इससे लगता नहीं कि जांच करने वाली मशीनरी भ्रष्टाचारी को संरक्षण दे रही है। भ्रष्ट तरीके से कमाए गए धन में उपर से नीचे तक बंटवारा होता है इसलिए पवित्र गंगा की धारा भले सूख रही हो बेईमानी की गंगा का प्रवाह हमेशा बना रहता है। इसका पानी भले ही प्रदूषण और सड़ांध से भर गया है लेकिन इसमें डुबकी लगाने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
इसे रोकने की कोशिश किसी तरफ से दिखाई नहीं देती है जनता भी इसाक लाभ उठाने में ही अपना हित समझने लगी है। पैसा फेंको, तमाशा देखो। जो काम किसी तरह संभव नहीं होता, वह चढ़ावा चढ़ाने से हो जाता है। बस यही तो चाहिए जनता को भी। बार-बार दफ्तर का चक्कर लगाने और नियम-कायदे के पचड़े में पड़ने से अच्छा यही है न कि ले-देकर अपना काम बना लो। भ्रष्टाचार में जनता भी जमकर मजे लूट रही है। जितना धन हो अपने पास, उतना लंबा अपना हाथ और उतने दूर तक अपनी पहुंच। पैसा और पहुंच हो तो अदालत का फैसला अपने पक्ष में कराया जा सकता है। कानून की व्याख्या अपने मनमाफिक कराई जा सकती है।
मधुमिता हत्याकांड में यही तो हुआ मुख्य अभियुक्त बाइज्जत बरी हो गए, सह अभियुक्त सजा पा गए। अदालत ने अभियुक्त के हाथ में ऐसा हथियार थमा दिया जिसके सहारे वह अगली अदालत से भी बरी हो सकता है। जब सभी भ्रष्टाचार की गंगा में हाथ धोने में लगे हों तो यह मुद्दा ही निरर्थक लगने लगता है। इसलिए हे मन तुम भी हरी के गुन गाओ और मस्त रहो। फिजूल में माथा पीटने से कोई फायदा नहीं है।
बुधवार, 14 अक्तूबर 2009
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