शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

सुप्रीम कोर्ट का प्रशंसनीय फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि अब सड़कों तथा सार्वजनिक स्थलों पर किसी प्रकार के पूजा स्थलों का निर्माण नहीं किया जा सकता। यह निर्णय केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी है। अभी तक यह हो रहा था कि सड़कों के किनारे, सार्वजनिक स्थलों पर, रेलवे स्टेशनों औऱ सरकारी जमीनों पर मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा या दरगाह स्थापित कर दी जाती थीं। इस निर्माण का मकसद सार्वजनिक स्थल पर कब्जा करना या धर्म के नाम पर अपनी दुकानदारी चलाना हुआ करता है। ऐसे निर्माण प्राय: रात में किए जाते थे। स्थानीय निकायों के कर्मचारी यदि आपत्ति जताते थे तो उनकी जेबें गरम कर दी जाती थी। फिर पूजा स्थल के आसपास की जमीनें घेर कर उसमें मनमुताबिक निर्माण कर दिए जाते थे। मकान, दुकानें या अन्य लाभदायक निर्माण। कुछ पंडे, पुजारी या जजमानी के भरोसे पलने वाले परिवार सड़कों के किनारे कोने अतरे की खाली जमीन पर रातोरात मंदिर खड़ा कर लेते थे। फिर अपने चेलों से उसकी सिद्धि का प्रचार करवाते थे। और धीरे धीरे भक्तों की इतनी भीड़ जुटने लगती थी कि पुजारी महाराज को अच्छी कमाई होने लगती थी।

ज्यादातर मंदिरों में हनुमान जी विराजमान रहते हैं। कुछ देसी देवियों के मंदिरों में भी भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है। जिनका जिक्र किसी धर्मग्रंथ में नहीं है। जैसे चौकिया माई, चौरा माई, सत्ती माई, संतोषी माई आदि। लेकिन इनके बारे में चमात्कारिक कथाएं भक्तों से सुनने को मिल जाएंगे। इसी प्रकार सड़कों के किनारे या सार्वजनिक स्थलों पर दरगाहों या मस्जिदों के निर्माण भी आए दिन देखने को मिलते थे। गांवों में ग्रामसमाज की भूमि पर पूजा स्थलों के निर्माण को लेकर ग्रामीणों में तनाव की खबरों आए दिन अखबारों में पढ़ने को मिल जाती हैं। धर्म के ठेकेदारों के लिए पूजा स्थल उनकी कमाई, जमीन जायदाद बनाने या सरकारी तथा सार्वजनिक जमीन पर कब्जा करने के साधन हैं।

इसलिए ऐसे तत्वों की सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नाराजगी स्वाभाविक है लेकिन आम नागरिक इससे खुश हैं। एक सुखद तथ्य यह है कि इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहमति बन गई थी। लेकिन यहा मुद्दा इतना संवेदनशील है कि राज्य सरकारें या स्थानीय प्रशासन इस दिशा में पहल नहीं कर पा रहा था। खासतौर पर अल्पसंख्यक समुदाय के मामले में तो उसके हाथ-पांव ही फूल जाते हैं। बनारस में अल्पसंख्यक समुदाय के दो वर्गों के बीच एक कब्रिस्तान के मामले में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला तक नहीं लागू कराया जा सका।
कितने विकास कार्य सिर्फ इसलिए सिरे तक नहीं पहुंच पाए कि उसके मार्ग में कोई पूजा स्थल पड़ गया था। गुजरात में जनता के व्यापक हितों के मद्देनजर किया जा रहा विकास कार्य इसलिए बीच में ही रुक गया कि कुछ मंदिर तोड़े जाने के खिलाफ विश्व हिंदू परिषद ने कड़ा ऐतराज जताया लेकिन लखनऊ में जेल तोड़े जाने के साथ ही परिसर में स्थित मंदिर तोड़े जाने में स्थानीय प्रशासन कामयाब रहा। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उसमें हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और राज्य सरकार तो अपने पूरे सत्ता बल के साथ स्थल पर खड़ी ही थी।

लेकिन ऐसी दिलेरी किसी सरकार या प्रशसन ने अल्पसंख्यक समुदाय के पूजा स्थलों के लिए नहीं दखाई जबकि ऐसी मशीनी तकनीक उपलब्ध है जिसेस किसी किसी पूजा स्थल को एक जगह से सुरक्षित उठा कर दूसरी जगह रखा जा सकता है। मलेशिया में एक मंदिर को उठा कर दूसरी जगह बिना उसे क्षति पहुंचाए स्थापित कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि उस देश में हिंदू अल्पसंख्यक हैं।

देश की जनता में शिक्षा के प्रसार के साथ साथ जागरुकता बढ़ रही है। लेकिन इसके साथ ही पूजा पाठ या कर्मकांड की प्रवृत्ति और धार्मिक आस्था भी बढ़ रही है। एक अच्छी बात यह है कि लोग विकास के प्रति सचेत भी हो रहे हैं। वे समझने लगे हैं कि अच्छे जीवन के लिए वकास भी जरुरी है क्योंकि विकास से ही मनुष्य की न्यनतम


आवश्यकताएं पूरी उपलब्ध हो सकती हैं और वह प्रगति की ओर अग्रसर हो सकता है। इसलिए धर्म के नाम पर ऐसे निर्माण से बचना है जिससे विकास और प्रगति का रास्ता अवरुद्ध हो इसके बावजूद समाज में ऐसे लोग तो रहेंगे ही जो अपने निजी स्वार्थों के लिए भ्रष्टतंत्र का लाभ उठा कर या ताकत के जोर पर पूजा स्थलों के निर्माण की कोशिश कर या ताकत के जोर पर पूजा स्थलों के निर्माण की कोशिश करते रहेंगे। ऐसे लोगों से निपटने के लिए शासन और प्रशासन को बिना किसी भेदभाव के दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देना होगा।

अपने देश में बहुत सी समस्याओं को वोट की राजनीति हल नहीं होने देती। बहुत सी समस्याएं इसके कारण पैदा होती हैं। इसलिए राज्य सरकारें और उनका प्रशासनिक तंत्र ईमानदारी से सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को लागू करेंगे इसमें संदेह है। वैसे भ्रष्टाचार के दलदल में डूबा प्रशासनिक तंत्र सुप्रीम कोर्ट के आदेश की हवा निकालने के लिए तो है ही।

2 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

हुजूर, बहुत देर कर दी !

इन सुप्रीम कोर्ट वालो को भी खूब मालूम है कि अब सड़क किनारे जगह ही कहाँ बची है, जो धर्म के नाम पर अतिकर्मन किया जा सके ?

Sunita Sharma Khatri ने कहा…

सही है अब सडकों के किनारे जगह ही कहां बची है। अब उन लोगो का क्या जो डर- डर कर यात्रा करते है जहां कोई धार्मिक जगह देखी वही हाथ जोड दिये जिससे कोई अनहोनी न घटे........