गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

करोड़पति सिब्बल का, अरबों का आइडिया


मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने आईआईटी प्रवेश परीक्षा में बैठने के लिए इंटरमीडिएट में न्यूनतम 80 फीसदी पाने की बाध्यता होने की अपनी इच्छा क्या जताई कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान और कुछ अन्य राज्यों में इसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई। अपनी योग्यता पर जरुरत से ज्यादा भरोसा करने वाले सिब्बल को उम्मीद थी कि उनके इस विद्वतापूर्ण परिकल्पना को सभी शिरोधार्य कर लेंगे। लेकिन उग्र विरोध औऱ भारी दबाव के कारण वो अपने पूर्व बयान से पलट गए। अपने पहले के बयान में उन्होंने 80-85 फीसदी अनिवार्यता के दो कारण बताए थे।
एक यह कि
छात्र अपनी कक्षाओं में जाएंगे औऱ परीश्रम से पढेंगे।

और दूसरी यह कि
कुकरमुत्तों की तरह उग रहे कोचिंग संस्थानों की प्रासंगिकता घटेगी।

दूसरे दिन के बयान में उन्होंने सफाई दी कि इस संबंध में निर्णय लेना उनके मंत्रालय का काम नहीं हैं। दूसरे दिन के बयान में सिब्बल ने अपने पहले के बयान से पलटते हुए कहा कि अभी विशेषज्ञों की समिति प्रवेश परीक्षा की प्रक्रिया तय कर रही है। वह जो सिफारिश करेगी वही मान्य होगी। हमने बार बार देखा है कि समितियां वही सिफारिश करती हैं जो सरकारें चाहती हैं।
जहां तक कोचिंग सेंटरों का सवाल है तो उनकी अहमियत घटने की बजाय बढ़ेगी। इंटर में पढ़ने वाले जो छात्र कोचिंग जाने की स्थिति में नहीं होते हैं। वो भी किसी तरह पैसा जुगाड़कर के कोचिंग जाएंगे ताकि इंटर में उनके 80 फीसदी अंक आ जाए। इसके लिए भले ही अभिभवाकों को खेत या गहने बेचने पड़े, कर्ज लेना पड़े।

सीबीएसई बोर्ड में 80 से 90 फीसदी अंक पाने वाले छात्रों की भरमार होती है। जबकि राज्यों के बोर्ड में इतने फीसदी अंक पाने वाले छात्र उंगलियों पर गिने जाते हैं। शिक्षा विदों का कहना है कि सीबीएसई बोर्ड अपने छात्रों को उदारता पूर्वक अंक देता है। यह भी कह सकते हैं कि वह अंक जुटाता है। जबकि राज्यों के बोर्ड परिक्षार्थियों की कॉपियां कड़ाई से जंचवाते हैं औऱ नंबर देने में कंजूसी करते हैं। सीबीएसई बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त पब्लिक स्कूलों में प्राय: संपन्न परिवारों की संताने जाती हैं औऱ अनिवार्य रुप से कोचिंग और ट्यूशन पढ़ती हैं। इनके शिक्षित अभिभावक इन्हें घर पर भी गाइड करते हैं।

इसके विपरित राज्यों के बोर्डों से संबंध ज्यादातर स्कूल या कॉलेजों में किसानों, मजदूरों, छोटे-मोटे व्यापारियों और कर्मचारियों की संताने जाती हैं। जिन्हें न तो घर पर ही उपयुक्त वातावरण और साधन मिलता है औऱ ना ही शिक्षा संस्थानों में। यूपी बोर्ड से संबंधित हजारों शिक्षण संस्थाओं में अध्यापकों की भारी कमी है। इन कॉलेजों में विज्ञान के छात्रों के लिए कायदे की लेबोरेटरी भी नहीं है। कम वेतन पर अधकचरे ज्ञान वाले अध्यापक और अध्यापिकाएं रखी जाती हैं। हांलाकि यही हाल पब्लिक स्कूलों का भी है। लेकिन वहां के छात्र कोचिंग या ट्यूशन के जरिए स्कूलों की कमी पूरी कर लेते हैं। लेकिन राज्यों से संबंधित शिक्षण संस्थाओं में पढ़ने वाले गरीब-ग्रामीण छात्रों को ये सुविधाएं नहीं मिल पाती। एक बात यह भी है कि केंद्रीय या प्रांतीय बोर्ड की परीक्षाओं में मिले अंक छात्रों की प्रतिभा की कसौटी नहीं हो सकते।

उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड में परिक्षार्थियों की कॉपियां जांचने में कितनी अंधेरगर्दी होती है ये बात किसी से छिपी नहीं है। ऐसी घटनाएं हर साल सामने आती है जब परीक्षा में फिसड्डी आने वाले छात्र की कॉपी जब दुबारा जांची गई तो वह मेरिट में आ गया। या अच्छे नंबरों से पास हुआ। कभी कभी परीक्षकों की लापरवाही परिक्षार्थी का भविष्य चौपट कर देती है। इसलिए यह नहीं माना जा सकता है कि परीक्षा में मिले नंबर छात्र की योग्यता का सटीक पैमाना होते हैं।

किसी छात्र का सिर्फ एक परीक्षा में प्राप्त अंक के आधार पर उसका पूरा भविष्य चौपट कर देना उचित नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इंजीनियरिंग या अन्य तकनीकी कक्षा में प्रवेश इंटरमीडिएट में प्राप्त अंको के आधार पर नहीं होता उसके लिए अलग प्रवेश परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं तब इंटर की परीक्षा को छात्र की प्रतिभा की कसौटी मानने का क्या औचित्य है।

जो कपिल सिब्बल हाई स्कूल के छात्रों के लिए बोर्ड की परीक्षा की अनिवार्यता खत्म कर देते हैं वे इंटर के छात्रों के लिए इंजीनियरिंग में दाखिले को इतना कठिन औऱ असंभव क्यों बना रहे हैं।
एक सवाल यह भी है कि उन छात्रों का क्या होगा जो आरक्षित कोटे से आते हैं। यदि कपिल सिब्बल की मंशा लागू कर दी गई तो उन राज्यों खास तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों के छात्र इंजीनियरिंग की कक्षाओं में खोजे नहीं मिलेंगे। जिस देश की संसद करोड़पतियों से भरी हो। जिस देश के मंत्री हाईटेक हों और जमीनी हकीकत से उन्हें कोई सरोकार न हो। उस देश में ऐसे ही जनविरोधी निर्णय लिए जाएंगे। ये एक कड़वी सच्चाई है।

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