मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

कैसे होगा गंगा का निर्मलीकरण?



केंद्र सरकार ने गंगा को अगले दस वर्षों में निर्मल कर देने का निश्चय किया है। यही नहीं प्रदूषण मुक्त गंगा में डॉल्फिन मछलियां छोड़ी जाएंगी। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता मे हाल ही में गंगा बेसिन अथॉरिटी की बैठक हुई थी। इसी बैठक में यह निर्णय लिया गया। अथॉरिटी में वे पांच राज्य भी शामिल हैं जिनसे होकर गंगा गुजरती हैं। लेकिन इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इस कार्य में आर्थिक हिस्सेदारी का प्रधानमंत्री का प्रस्ताव नामंजूर कर दिया। बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि गंगा के निर्मलीकरण पर आने वाले खर्च का सत्तर फीसदी हिस्सा केंद्र वहन करेगा, सिर्फ तीस फीसदी हिस्सा राज्य सरकारों को खर्च करना होगा।

मूर्तियों और स्मारकों पर हजारों करोड़ रुपए खर्च करने वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने मदद करना तो दूर उलटे केंद्र से ग्यारह हजार करोड़ रुपए की मांग की। उत्तराखंड की सरकार ने दस हजार करोड़ मांगे। बहरहाल इस महात्वाकांक्षी योजना पर आने वाले खर्च का फॉर्मूला तैयार करने का कार्य योजना आयोग को सौंप दिया गया है। दरअसल राज्यों की नीयत यह है कि इसी बहाने केंद्र से पर्याप्त धन लेकर वे गंगा और उसकी सहायक नदियों में गिरने वाले सीवेज और औद्योगिक कचरे को ठिकाने लगाने की वैकल्पिक योजनाएं पूरी कर लेंगे।

गंगा बेसिन अथॉरिटी की योजना सिर्फ गंगा को ही प्रदूषण मुक्त करना नहीं है। अपितु उन छोटी नदियों को भी प्रदूषण मुक्त करने की है जो गंदा पानी गंगा में गिराती हैं। इसके बिना गंगा को प्रदूषण मुक्त करना संभव नहीं है गंगा सफाई पयोजना पर अगले दस वर्षों में 15 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। अगले महीने के अंत तक उन स्थानों को चिन्हित कर लिया जाएगा। जिनकी वजह से गंगा प्रदूषित हो रही है। तीस लाख डॉलर की मदद विश्व बैंक से मंजूर हो गई है। गंगा को प्रदूषणमुक्त करने की योजना 1985 में भी बनाई गई थी- गंगा एक्शन प्लान के नाम से। इस प्लान पर दो हजार करोड़ रुपए खर्च हुए लेकिन गंगा पहले से भी ज्यादा मैली हो गई.


गंगा के किनारे कुल 2073 कस्बे और शहर बसे हुए हैं इनके सीवेज का पानी सीधे गंगा में गिरता है। इनसे गंगा का पानी 75 प्रतिशत तक प्रदूषित होता है। रही सही कसर औद्योगिक कचरे ने पूरी कर दी है। केंद्र सरकार की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार ऋषिकेश से लेकर फरक्का तक गंगा का पानी पीने लायक नहीं रह गया है। तटीय शहरों और कस्बों के सीवेज की गंदगी ने उसके पानी को पीने लायक तो दूर नहाने लायक नहीं छोड़ा है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ऋषिकेश से लेकर पश्चिम बंगाल के डायमंड हार्बर तक कुल 23 स्थानों से गंगाजल के नमूने लिए गए और उनकी गुणवत्ता जांची गई। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने इन नमूनों को पांच भागों में बांटा। पहली श्रेणी में पानी को परिशोधित करने के बाद पीया जा सकता है, लेकिन जिन जगहों से नमूने लिए गए उनमें से कहीं का पानी प्रथम श्रेणी में नहीं आ पाया। ऋषिकेश का पानी द्वितीय श्रेणी का पाया गया जिसमें सिर्फ स्नान किया जा सकता है। यहां से हरिद्वार तक पहुंचने में गंगाजल तृतीय श्रेणी में आ जाता है। इस पानी को ट्रीटमेंट के बगैर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। गढ़मुक्तेश्वर, कन्नौज, बक्सर, पटना, मुंगेर, भागलपुर और फरक्का का पानी इसी श्रेणी में आता है। कानपुर, इलाहाबाद, मिर्जापुर औऱ वाराणसी में पानी सिर्फ जंगली जानवर ही पी सकते हैं।

देश की लगभग आधी आबादी गंगा से जीवन पाती है। गंगा प्राणदायिनी है। केंद्र सरकार गंगा को प्रदूषणमुक्त करने की पिछली योजना की विफलता को ध्यान में रखकर ही इस बार पहल कर रही है। इसीलिए अथॉरिटी में पांचों गंगा के किनारे के शहरों और कस्बों के सीवेज की वैकल्पिक व्यवस्था करने की है। इस गंदगी को गंगा में गिरने से रोकने के बाद ही गंगा जीवनदायिनी बन पाएगी। गंगा का दो तिहाई प्रदूषण सीवेज से ही हो रहा है।

कुछ राज्य गंगा के पानी का इस्तेमाल सिंचाई और विद्युत उत्पादन के लिए भी करना चाहते हैं। यह भी तभी संभव है जब गंगा पर और बांध बनाए जाएं। टिहरी बांध की वजह से गंगा का प्रवाह पहले ही इतना धीमा हो चुका है कि इसकी जैविक क्षमता लगभग नष्ट हो चुकी है। नए बांधों के निर्माण से रहा सहा जल प्रवाह भी खत्म हो जाएगा और गंगा का पानी नाला जैसा हो जाएगा। जैसा रामगंगा का पानी हो चुका है। गंगा की एक और सहयोगी नदी यमुना है। यह नदी इलाहाबाद में गंगा से मिलती है और अपना प्रदूषित जल गंगा में उड़ेलती है। देश की राजधानी दिल्ली में यमुना की स्थिति इतनी भयावह है कि उधर से गुजरने वालों को नाक पर रुमाल रखना पड़ता है।

इसी प्रकार और कई नदियां हैं जो अपना गंदा जल गंगा में गिराती हैं। इन नदियों को प्रदूषणमुक्त किए बिना गंगा को पूर्व की स्थिति में ला पाना मुमकिन नहीं है। स्नानपर्वों पर लाखों लोग इस मोक्षदायिनी में स्नान करके अपना जीवन सफल बनाते हैं वो गंगाजल का आचमन करते हैं और उसे छोटे-छोटे पात्रों में भरकर अपने घर भी ले जाते हैं। पहले जब गंगा निर्मल थी तब इसके पानी में महीनों तक कोई खराबी नहीं आती थी। विभिन्न धार्मिक कार्यों में इसका इसका इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन अब ऐसी बात नहीं है। हांलाकि करोड़ों लोगों की आस्था आज भी गंगा में यथावत है। हमारी कोशिश होनी चाहिए की यह आस्था किसी भी हालत मे खंडित न होने पाए। इसलिए उन राज्यों का फर्ज बनता है कि वे अपने क्षुद्र स्वार्थों को छोड़कर गंगा की सफाई योजना में दिल खोलकर मदद करें और इस पवित्र कार्य में राजनीति को न आने दे।

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