शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

चीन की चाल समझो!


हाल के विधानसभा चुनाव में जब प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह अरुणाचल प्रदेश गए तो चीन को बहुत बुरा लगा। चीन के विदेश मंत्रालय ने कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा कि अरुणाचल प्रदेश विवादित क्षेत्र है इसलिए भारत के प्रधानमंत्री को वहां नहीं जाना चाहिए था। हांलाकि अरुणाचल प्रदेश के लोगों ने 70 फीसदी मतदान कर चीन को करारा जवाब दे दिया था। लेकिन भारत के विदेश मंत्रालय ने भी चीन की आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है इसीलिए भारतीय प्रधानमंत्री वहां जब चाहे जा सकते हैं।

लेकिन इस बात भारत की खामोशी टूटी तो काफी जोश भरी थी। भारत ने चीन पर पलटवार करते हुए कहा कि चीन अपनी उन परियोजनाओं को तुरंत बंद कर दे जो पाकिस्तान द्वारा कब्जाई गई जम्मू-कश्मीर की जमीन में चला रहा है। भारत की यह भूमि 1947 से ही पाकिस्तान के अनधिकृत कब्जे में है। चीन ने अवैध तरीके से इस भूभाग में सड़क बना रखी है। अब चीन इसे दुबारा बना रहा है। उसे भारत के इस भूभाग में ये निर्माण कार्य तत्काल बंद कर देना चाहिए ताकि दोनों देशों के बीच दीर्घ कालिक संबंध बने रहे।

भारत के इस तल्ख बयान के बाद चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलने की इच्छा व्यक्त की है। थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में 23 से 25 अक्टूबर तक होने वाले आसियान सम्मेलन में दोनों देशों के नेता एक साथ होंगे। इस बात की पूरी संभावना है कि भारत औऱ चीन के प्रधानमंत्रियों के बीच में बातचीत हो।

चीन दो तरफा चाल चलने में माहिर खिलाड़ी हैं। उसकी कूटनीतिक चालें प्राय: भारतीय नेताओं पर भारी पड़ जाती हैं। एक चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स भारत को खतरनाक परिणामों की चेतावनी दी है। इस अखबार ने अपनी संपादकीय में लिखा है कि भारतीय प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की अरुणाचल यात्रा और सीमा के पास किए जा रहे सामरिक निर्माण चीन को उकसाने वाली कार्रवाईयां हैं इसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। अखबार ने लिखा है कि भारत चीन की सीमा के पास सामरिक निर्माण कर रहा है लेकिन चीन द्वारा सीमावर्ती क्षेत्र में किए गए सामरिक निर्माण कार्य के मुकाबले वह कुछ भी नहीं है।

तो क्या भारत 1962 की तरह हाथ पर हाथ धरे बैठा रहे और चीन एकतरफा सैनिक तैयारी करे। उल्लेखनीय है कि चीन के सारे अखबार वही लिख और छाप सकते हैं जो सरकार चाहती है या फिर जो उसकी नीतियों के अनुकूल होता है। वहां भारत की तरह अभिव्यक्ति कि आजादी नहीं है। इसलिए साफ कहा जा सकता है कि चीन ने इस अखबार के जरिए भारत को धमकाने की पूरी कोशिश की है। यही नहीं चीन सीमा पर अपने सामरिक निर्माण कार्यों का हौवा दिखाकर भारत को डराने की भी कोशिश कर रहा है। ऐसी स्थिति में भारत को अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए सीमा पर सामरिक निर्माण जैसे सड़कें हवाई पट्टियां और हेलीपैडों के निर्माण में तेजी लानी चाहिए ताकि चीन की तुलना में हमारी सैनिक शक्ति और तैयारी कमजोर न पड़े।

भारत और चीन के बीच सीमा का निर्धारण 1913-14 में हुआ था जब ब्रिटिश सरकार, चीन औऱ तिब्बत के प्रतिनिधियों ने आपसी सहमति से एक रेखा खींची थी जो मैकमोहन रेखा के नाम से जानी जाती है। जब भारत आजाद हुआ और ब्रिटिश सरकार ने भारत से अपना डेरा डंडा उठा लिया तब चीन ने मैकमोहन रेखा को मानने से इनकार कर दिया औऱ लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश के विशाल क्षेत्र पर अपना दावा जताने लगा। पहले भारत ने गहरी दोस्ती की और भारतीयों से हिंदी चीनी भाई-भाई के नारे लगवाएं। भारतीय नेता चीन की कूटनीति को समझने में बिल्कुल असमर्थ रहे और ओम शांति शांति का जाप करते रहे। चीन सैनिक तैयारी में लगा रहा। इसी बीच उसने जबरन तिब्बत पर कब्जा कर लिया। और चाओ माओ के मोह में फंसे तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु से कहलवा दिया कि तिब्बत चीन का ही हिस्सा है। इसके बाद चीन भारतीय सीमा पर तैनात था। भारत के नेता देश की सुरक्षा की चिंता किए बिना विश्व को पंचशील का पाठ पढ़ाने में जुटे थे। सैनिक तैयारी करने के बाद चीन ने भारत पर चढ़ाई कर दी और धड़धड़ाता हुआ असम तक चला आया। अंतर्राष्ट्रीय खास तौर से अमेरिका के दबाव में आकर चीन वापस तो लौटा लेकिन लद्दाख क्षेत्र का 48 हजार किलोमीटर का क्षेत्र अब भी उसके कब्जे में हैं।

चीन कभी पूरे अरुणाचल प्रदेश पर अपना हक जताता है तो कभी तवांग पर। उसने सिक्किम के कुछ गांवों पर भी कब्जा किया है देखना यह है कि चीन का यह विस्तार वाद कहां जाकर थमता है। बहुत पहले से भारत को सूचनाएं मिलती रही कि चीन सीमा पर अपने क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछा रहा है। हवाईं पट्टियां बना रहा है। हेलिपैड बना रहा है। इसके अलावा वो ऐसे निर्माण कार्य भी कर रहा है जो युद्ध के समय जरुरी होते हैं। उसने लद्दाख की हथियाई गई जमीन पर भी व्यापक निर्माण किए हैं।

यदि ग्लोबल टाइम्स कहता है कि चीन के सामरिक निर्माण के मुकाबले भारत कहीं नहीं ठहरता तो उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता। भारत की नींद देर से खुली। अभी ये शुऱुआती दौर में है। भारतीय नेताओं को ये बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि चीन से युद्ध अपरिहार्य है। जिस दिन चीन अपनी सैनिक तैयारियों से संतुष्ट हो जाएगा उसी दिन भारत पर आक्रमण कर देगा। इसलिए भारत भले ही चीन से मैत्री भाव रखे लेकिन यह बात हमेशा दिमाग में रखे कि उसे कभी न कभी चीन की सैनिक ताकत का मुकाबला करना है। हमारे खयाल से वह दिन दूर नहीं।

3 टिप्‍पणियां:

kishore ghildiyal ने कहा…

kya kahe sahab bharat desh hain hi kuchh aisa ki jab paani sar se gujar jaata hain tab hi hosh me aata hain aap ka ek safal prayass hum bhartiyo ko jagane ke liye
bahut bahut dhanyavaad
http/jyotishkishore blogspot.com
pt.kishore ghildiyal 09818564685

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

मनमोहन बड़े गुस्‍से में है, लगता है अब हमला हो कर ही रहेगा।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

दीपपर्व की अशेष शुभकामनाएँ।
आपकी लेखनी से साहित्य जगत जगमगाए।
लक्ष्मी जी आपका बैलेंस, मंहगाई की तरह रोड बढ़ाएँ।

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