गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

लालू-राबड़ी के बहाने


हिंदुओं को रिझाने के लिए भाजपा के युवा प्रत्याशी वरुण गांधी ने जो काम अपने चुनाव क्षेत्र पीलीभीत में किया, मुसलमानों को रिझाने के लिए वही काम राजद सुप्रीमों और रेलमंत्री लालू यादव ने किशनगंज की सार्वजनिक सभा में किया। वरुण अपना चुनाव प्रचार कर रहे थे और लालू चर्चित मुस्लिम नेता तस्लीमुद्दीन के नामांकन के बाद एक सभा को संबोधित कर रहे थे। मंच पर लोजपा नेता रामविलास पासवान विराजमान थे। लाल यादव ने वरुण गांधी की आलोचना करते हुए कहा कि यदि मैं गृहमंत्री होता तो मुसलमानों के खिलाफ टिप्पणी करने वाले वरुण गांधी की छाती पर रोलर चलवा देता।

वरुण गांधी युवा हैं और राजनीति के लिए नए हैं। लेकिन लालू यादव के पास तो राजनीति का लंबा अनुभव है। वो विचारों और अनुभव दोनों से ही परिपक्व नेता हैं। उनके मुंह से इस तरह की ओछी बाते शोभा नहीं देती। जिससे एक तानाशाह की गंध निकलती हो। इस तरह के भड़काऊ और लिजलिजी भाषा का इस्तेमाल वही कमअक्ल नेता करता है जिसके पास विचारों का अकाल होता है। उसकी लट्ठमार भाषा सिर्फ अनपढ़ और जाहिल लोगों को लुभाती है।

बिहार में लालू यादव के 20 सालों के शासनकाल में इस तरह के लोगों की भारी भरकम फौज खड़ी हो गई है। किशनगंज मुस्लिम बहुल इलाका है। वहां के लिए तस्लीमुद्दीन जैसे माफिया उम्मीदवार और लालू जैसे छिछोरे वक्ता दोनों ही उपयुक्त हैं। देश का सौभाग्य है कि लालू यादव गृह मंत्री नहीं हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने गृह मंत्रालय की पुरजोर मांग की थी। इसके लिए वो कुछ दिनों तक कोपभवन में भी रहे। लेकिन उन्हें रेल मंत्रालय पर राजी किया गया।

कांग्रेस के नेता उनकी उजड्डता और वैचारिक दिवालियेपन से अच्छी तरह से परिचित थे। यदि उन्हें गृहमंत्री बना दिया जाता तो पूरा देश बिहार जैसी अराजकता की आग में झुलस रहा होता। और लालू अपने राजनीतिक विरोधियों पर रोलर भले ही न चलवाते लेकिन उस जैसा ही कोई ऐसा काम जरुर करते जो उससे ज्यादा खतरनाक हो सकता था। और उसके नीचे दबी रियाया न चीख पाती, न सांस ले पाती। एक तानाशाह की तरह लालू यादव बदहाली और पीड़ा से छटपटाती जनता की असहायता पर अट्टाहास कर रहे होते।

तो क्या वरुण गांधी जैसा ही कार्य करने के लिए लालू यादव पर भी रासुका लगा देना चाहिए?

ऐसा न तो संभव है और नहीं उचित। फिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मायावती हो भी नहीं सकते। नीतीश कुमार वोट की राजनीति सिद्ध करने लिए इतना घिनौना खेल नहीं खेल सकते जितना मुस्लिम वोटों के लिए यूपी में मायावती ने खेला है। लालू यादव पढ़े लिखे हैं। इसलिए जो कुछ अनापशनाप बोलते हैं एक सोची समझी रणनीति के तहत ही बोलते हैं। शक्ल से भले ‘लल्लू’ लगते हों।

लेकिन उनकी धर्मपत्नी राबड़ी देवी अपने पति का अनुकरण में कभी कभी मात खा जाती है। लेकिन उन्हें भी राजनीति का कम अनुभव नहीं है। बिहार की मुख्यमंत्री रह चुकी है। लेकिन वो अपने कहे के फलितार्थों का आकलन करने में चूक जाती हैं। वो इन दिनों सारण संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार अपने पति लालू यादव को विजय दिलाने में जुटी है। लेकिन वह लालू की नकल में कुछ ऐसी बातें कर गईं कि कानूनी शिकंजे में फंस गईं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू के प्रदेश अध्यक्ष लल्लन सिंह को लेकर गाली-गलौज पर उतर आईं जो तमाम लोगों की तरह चुनाव आयोग को भी नागवार लगा। और उसने उनके भाषण की सीडी तलब की है।

फिलहाल उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है। राबड़ी देवी के खिलाफ जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 125 और आईपीसी की धारा 171 के तरह मामला दर्ज किया गया है। राबड़ी देवी की सभा की सीडी मिलने के बाद चुनाव आयोग अलग कार्रवाई करेगा। बिहार की इस पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ एक और मामला दायर किया गया है।

राबड़ी देवी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर खुलेआम आरोप लगा दिया कि मुख्यमंत्री ने कोर्ट और मीडिया को मुठ्ठी में कर रखा है। इस आपत्तिजनक आरोप पर एक अधिवक्ता आशुतोष रंजन पांडे ने पटना उच्च न्यायालय में मानहानि का आपराधिक मामला दायर कर दिया है।

भाजपा लीगल सेल के संयोजक अवधेश कुमार पांडे ने भी एक याचिका दायर करके राबड़ी देवी पर अवमानना का मुकदमा चलाने का आग्रह किया है। पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की दो सदस्यीय खंडपीठ के समझ दायर याचिका में कहा गया है कि राबड़ी देवी के आपत्तिजनक भाषण को स्वयं संज्ञान में लेते हुए न्यायालय को उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना का मामला चलाना चाहिए। लालू यादव भी कानून के घेरे में आ गए हैं और उनकी गिरफ्तारी के आदेश जारी कर दिए गए हैं।

लेकिन बौद्धिक समाज के लिए चिंता की बात ये है कि क्या ऐसे ही सतही सोच भाषाहीन नेता देश का नेतृत्व करते रहेंगे? यदि कोई पार्टी या नेता कथित धर्म निरपेक्षता और फासीवाद से संघर्ष के नाम पर असंगत भाषा का प्रयोग करके वोट बैंक की ओछी राजनीति करेगा तो प्रतिद्वंदी क्यों पीछे रहेगा? एक मुस्लिम समाज का भयादोहन करके उसका अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने का प्रयास करेगा। तो दूसरा हिंदु समाज को अपने पक्ष में गोलबंद करने का प्रयास क्यों नहीं करेगा?

यदि हम मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति को सही ठहराएंगे। तो हिंदू वोटबैंक की राजनीति को किस आधार पर गलत कह सकेंगे? जाहिर है कि दोनों समुदायों को अपने पीछे गोलबंद करने के लिए उनके भीतर नफरत और खौफ के बीज बोने ही होंगे। यही कार्य आजादी के पूर्व अंग्रेजों ने किया और आजादी के बाद विभिन्न राजनीतिक पार्टियां कर रही हैं। बल्कि आजाद भारत के नेता एक कदम आगे बढ़कर हिंदू और मुस्लिम समाज के भीतर जातिगत झगड़े पैदा करने की कोशिश में जुट गए हैं। हिंदू समाज तो बंट ही चुका है, मुस्लिम समाज को अगड़े औऱ पीछड़े तबकों में बांटने की कोशिश शुरू हो गई है। कैसा होगा हमारे लोकतंत्र का स्वरुप?

1 टिप्पणी:

संगीता पुरी ने कहा…

अच्‍छे विश्‍लेषण के साथ लिखे गए इस सुंदर आलेख के लिए धन्‍यवाद।