गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

वही डफली, वही राग

मुसमानों को रिझाने के लिए वोट के सौदागर छिछले किस्म के वही पुराने राजनीतिक नुस्खे बार-बार दुहराते हैं। बिहार के दो केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान ने सुर में सुर मिलाते हुए वही पुरानी डफली फिर बजानी शुरू की है जिस पर वे कभी राग मल्हार गाया करते थे। मुस्लिम वोट कांग्रेस की ओर न खिसकने पाए इसिलए इन नेताओं ने फिर दुहराया है कि अयोध्या में बाबरी ढांचा के विध्वंस के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है क्योंकि उस समय केंद्र में कांग्रेस यानि पी.वी. नरसिम्हाराव की सरकार थी।

ऐसा कहते हुए इन नेताओं ने इस बात का ध्यान नहीं दिया कि बाबरी विध्वंस के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार थी जिसके मुखिया कल्याण सिंह थे। इन्हीं कल्याण सिंह को चौथे मोर्चे के एक घटक समाजवादी पार्टी ने गले लगाया है ताकि उत्तर प्रदेश के लोध वोट उसे मिल सके। इन नेताओं ने बाबरी विध्वंस के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि उसी कांग्रेस के नेतृत्व में गठित सरकार में ये मंत्री हैं और विगत पांच वर्षों से सत्ता का सुख भोग रहे हैं।

नैतिकता का तकाजा तो ये था कि इस तरह का ओछा बयान देने से पहले लालू और पासवान अपने मंत्री पदों से इस्तीफा दे देते। जिस तरह से कुछ अन्य मंत्रियों ने लोकसभा चुनाव से पहले अपने पदों से दिया था ताकि चुनाव में वो कांग्रेस के मुकाबले खड़े हो सकें। मजे की बात ये है कि चौथे मोर्चे के सभी नेता अभी भी अपना प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को और अपनी सरकार यूपीए को बता रहे हैं। इस तरह ये दोस्ती और जंग एक साथ चला रहे हैं।

दरअसल ये सत्ता के सारे विकल्प खुले रखना चाहते हैं। लालू यादव का फॉर्मूला है कि यदि कांग्रेस यूपीए सरकार का नेतृत्व करने लायक सीटें नहीं जुटा पाई तो वो तीसरे मोर्चे और अपने मोर्चे के घटक दलों के सहयोग से खुद सरकार बनाएंगे। और इस प्रकार वो प्रधानमंत्री बन सकेंगे, जिसकी आकांक्षा वो कई अवसरों पर व्यक्त भी कर चुके हैं। बदकिस्मती से यदि तीसरे मोर्च के साझीदार देवगौड़ा प्रधानमंत्री बन गए तो उनकी गृहमंत्री बनने की अभिलाषा पूरी हो जाएगी। यदि दुबारा यूपीए सरकार बनती है तो कांग्रेस की पहले की अपेक्षा कमजोर स्थिति उनके लिए गृहमंत्री का रास्ता साफ कर देगी। लेकिन ये तभी संभव होगा जब मुस्लिम मतदाता लालू के साथ चिपके रहे या चौथे मोर्चे की स्थिति काफी मजबूत हो।

सपा, राजद और लोजप जैसे क्षेत्रिय दलों से मुसलमानों का मोहभंग होने लगा है। उनमें जैसे-जैसे जागरुकता बढ़ रही है। वैसै ही वैसे वो अपने हितों के प्रति सजग होने लगे हैं और उन्हें लगने लगा है कि इन दलों के नेता उन्हें भ्रमित रखकर सिर्फ अपना हित साधने में लगे हुए हैं। ये वोटकामी लोग उनका भला नहीं कर सकते हैं। वास्तविकता भी यही है। बार बार बाबरी विध्वंस का मामला उठाने और इसके लिए कभी भाजपा और कभी कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराने का उद्देश्य आखिर क्या हो सकता है।
यदि कांग्रेस ही इसके लिए जिम्मेदार थी तो लालू और पासवान आखिर क्यों इस सरकार में बने हुए हैं। हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दरार कायम रखने या नई दरारे पैदा करने का षणयंत्र आखिर कब तक चलेगा। मुसलमानों को देश की मुख्यधारा से अलग रखने का प्रयास आखिर क्यों कर रहे हैं ये तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेता। वे बार बार ऐसे मुद्दे क्यों उठा रहे हैं जिससे मुस्लिम समुदाय के घाव हरे हों।

देश का लगभग हर व्यक्ति जान चुका है कि बाबरी विध्वंस का जिम्मेदार कौन है। अब सवाल ये है कि आखिर इस विवादास्पद मसले को सुलझाया कैसे जाए। कट्टरवाद के उभार को कैसे रोका जाए। देश के गरीब लोगों में सबसे ज्यादा गरीब मुस्लिम तबका ही है। उनकी गरीबी कैसे दूर की जाए। क्या उपाय किया जा सकता है कि आम मुसलमान मुल्लाओं मौलवियों के चंगुल से निकलकर आधुनिक शिक्षा ग्रहण कर सके और आधुनिक समाज का अंग बन सके। मुस्लिमों में जितनी अशिक्षा गरीबी बेरोजगारी होगी उतना ही उनका भावनात्मक शोषण होगा। कट्टरवादी, आतंकवादी, पोंगापंथी, पुरातनपंथी उन्हें अपने चंगुल में फंसाएंगे और सभ्य तथा जिम्मेदार नागरिक बनने से महरुम करेंगे।

सत्ता के लोभी और स्वार्थी नेता कभी नहीं चाहते कि देश के नागरिकों में जागरुकता आए, सुशिक्षित बने, अच्छे बुरे का पहचान करने का विवेक पैदा हो। क्योंकि यदि ऐसा होगा तो वे जाति, क्षेत्र और धर्म के नाम पर आम जन का भावनात्मक दोहन नहीं कर पाएंगे। उन्हें वोट लेने के लिए अपने भीतर गुणवत्ता विकसित करनी पड़ेगी। अपनी योग्यता सिद्ध करनी पड़ेगी। जनता के सामने आदर्श प्रस्तुत करना पड़ेगा और जनता के तमाम सवालों का जवाब देना पड़ेगा। उन्हें बताना पड़ेगा कि उन्होंने अपने पांच सालों के कार्यकाल में जनता की भलाई और उनके उत्थान के लिए क्या क्या किया? उनके पास अकूत दौलत कहां से आई?

इसलिए जब मुसलमानों की बात आती है तो वोट की राजनीति करने वाले लालू और पासवान जैसे तमाम नेता नकारात्मक मुद्दे उठाते हैं। और बहुसंख्यक समाज के प्रति नफरत तथा खौफ पैदा करते हैं। अल्पसंख्यक समुदाय को समझाते हैं कि देखो तुम्हारी सुरक्षा का ठेका सिर्फ हमारे पास है। उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश कभी नहीं करते।

लालू को यह बताना चाहिए कि उन्होंने अपने 20 वर्षों के बिहार के शासन के दौरान मुसलमानों को आधुनिकता से जोड़ने के लिए या उनके अन्य हितों के लिए क्या काम किया?

4 टिप्‍पणियां:

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

बात तो सही है, पर इससे उबरने का कोई रास्ता निकालना होगा.

शब्दकार-डॉo कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

नमस्कार,
इसे आप हमारी टिप्पणी समझें या फिर स्वार्थ। यह एक रचनात्मक ब्लाग शब्दकार के लिए किया जा रहा प्रचार है। इस बहाने आपकी लेखन क्षमता से भी परिचित हो सके। हम आपसे आशा करते हैं कि आप इस बात को अन्यथा नहीं लेंगे कि हमने आपकी पोस्ट पर किसी तरह की टिप्पणी नहीं की।
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सहयोग करने के लिए अग्रिम आभार।
कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
शब्दकार रायटोक्रेट कुमारेन्द्र

Udan Tashtari ने कहा…

सब वोट की राजनिती है.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

यह सब वोट की राजनिति है।किसी को जनता के दुख दर्द से कुछ लेना देना नही है।उन्हें बस कुर्सी नजर आती है।