शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

चुनाव आयोग की निष्पक्षता संदिग्ध

चुनाव आयोग ने एक ही तारीख के आसपास दो फैसले लिए। पहला फैसला बहुमत से लिया गया, जबकि दूसरा सर्वसम्मति से। पहला मुद्दा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संबंध में था। जिसमें चुनाव आयुक्त नवीन चावला और वाईएस कुरैशी एक तरफ थे और मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी दूसरी तरफ। हाल ही में सोनिया गांधी ने बेल्जियम सरकार से प्रतिष्ठित अवॉर्ड प्राप्त किया। मुख्य चुनाव आयुक्त गोपालस्वामी का कहना था कि इस बात की जांच होनी चाहिए कि अवॉर्ड प्राप्त करते समय सोनिया गांधी ने बेल्जियम के संविधान के प्रति निष्ठा व्यक्त की है या नहीं। यदि ऐसा किया होगा तो लोकसभा से उनकी सदस्यता की जानी चाहिए। लेकिन चावला और कुरैशी ने मुख्य चुनाव आयुक्त की इस राय से असहमति व्यक्त की और ये मामला अंतिम स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया। राष्ट्रपति के लिए इस पर स्वीकृति की मुहर लगाने में कोई कठनाई नहीं होगी। क्योंकि उनके पास बहुमत से किया गया फैसला स्वीकृति के लिए भेजा गया है।

चुनाव आयोग ने अपने दूसरे फैसले के मुताबिक बीजेपी के युवा नेता और पीलीभीत संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी वरुण गांधी के भदोही दौरे पर प्रतिबंध लगा दिया। भदोही में चुनाव प्रचार के अंतिम दिन वरुण को कई सभाएं संबोधित करनी थी और कई रोड शो भी करने थे। उल्लेखनीय है कि पीलीभीत में विवादास्पद भाषण देने के कारण उत्तर प्रदेश सरकार ने उनपर रासुका लगा दिया था। वरुण गांधी अदालत में ये शपथपत्र दाखिल करने के बाद पेरोल पर छूटे हैं कि वो अब भड़काऊ भाषण नहीं देंगे। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट का था जिसका पालन वरुण गांधी ने किया और जेल से बाहर आए। फिर उनके चुनाव दौरे पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया। क्या चुनाव आयोग को उनके भाषण और आचरण की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए थी। क्या वरुण गांधी को उनके शपथपत्र के मुताबिक सुधरने का मौका नहीं देना चाहिए था। भाजपा नेताओं ने चुनाव आयोग के इस फैसले को पक्षपात पूर्ण और अन्यायपूर्ण बताया।

केंद्र की कांग्रेस सरकार संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग के लिए खासा बदनाम रही है। पहले चुनाव आयोग एक सदस्यीय हुआ करता था। जो केंद्र की कांग्रेस सरकार के इशारे पर नाचा करता था। पहली बार शेषन ने इस मिथक को तोड़ा था। लेकिन राजग सरकार ने चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया। यूपीए सरकार बनने के बाद चुनाव आयोग में नवीन चावला की नियुक्ति कर दी गई। जो अपने कांग्रेस प्रेम के लिए बदनाम रहे हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त गोपालस्वामी ने चावला पर आरोप लगाया कि उन्होंने आयोग के एक गुप्त निर्णय से कांग्रेस को अवगत कराया था। लेकिन गोपालस्वामी की इस शिकायत की कोई नोटिस यूपीए सरकार ने नहीं ली।

अब गोपालस्वामी ने अवकाश ग्रहण कर लिया और कांग्रेस के हमदर्द नवीन चावला मुख्य चुनाव आयुक्त बन गए हैं। गौरतलब है कि नवीन चावला चुनाव आयुक्त नियुक्त हुए थे तब तत्कालिक मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी ने उन्हें हटाने की शिफारिश राष्ट्रपति से की थी। लेकिन कांग्रेस की कृपा चुनी गई राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल उसे कैसे मंजूर करती। जाहिर है गोपालस्वामी की सिफारिश नामंजूर कर दी गई। लेकिन ऐसा किस आधार पर किया गया। क्या तर्क दिए गए इसका खुलासा करने के लिए राष्ट्रपति भवन और केंद्र सरकार तैयार नहीं है।
केंद्र सरकार का कहना है कि ये दो व्यक्तियों के बीच गोपनीय वैधानिक पत्राचार का मामला है इसलिए इसका खुलासा नहीं किया जा सकता। भाजपा के महासचिव अरुण जेटली ने एक जनहित याचिका दायर कर केंद्रीय विधि मंत्रालय के प्रशासनिक विभाग से गोपालस्वामी की सिफारिशों और उस पर सरकार की अनुसंशाओं का ब्योरा देने का आग्रह किया था। लेकिन केंद्र सरकार ने इसे नामंजूर कर दिया।

केंद्र सरकार के पत्र से मिलता जुलता पत्र राष्ट्रपति भवन से भी मिला था। देखा जाए तो केंद्र सरकार ने सूचना के अधिकार को ताक पर रख दिया। जिस व्यक्ति का चरित्र दागदार हो उसकी नियुक्ति चुनाव आयुक्त जैसे महत्वपूर्ण पद पर किया जाना जनहित का गंभीर मामला है। इसपर कानूनी कार्रवाई होनी ही चाहिए औऱ इसके लिए सुप्रीम कोर्ट उचित मंच है। भाजपा नेता संभवत इस मंच का उपयोग करें।
चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था की निष्पक्षता असंदिग्ध होनी ही चाहिए। लेकिन इस लोकसभा चुनाव में कई फैसले ऐसे लिए गए जो चुनाव आयोग की इमानदारी पर सवालिया निशान खड़े करते हैं। वरुण गांधी को चुनावी दौरे से रोकना तो बिल्कुल असंगत है।

इससे भी ज्यादा भड़काऊ भाषण देने वाले दक्षिण के कई नेता छुट्टा घूम रहे हैं। चुनाव आयोग ने उनपर नकेल डालने की कोई कोशिश नहीं की। अब जब यूपीए सरकार ने नवीन चावला जैसे संदिग्ध व्यक्ति को मुख्य चुनाव आयुक्त बना दिया है तो भविष्य में देश की जनता को और भी चौकन्ना रहना होगा। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने भी नवीन चावला और कुरैशी की निष्पक्षता को कठघरे में खड़ा किया है।
नियुक्ति के समय से ही विपक्षी पार्टियां चावला के चरित्र को दागदार बताती आ रही है। सवाल है कि कांग्रेस के शासनकाल में ही महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर दागदार क्यों बिठाए जाते हैं।

1 टिप्पणी:

Raravi ने कहा…

Agar sonia ganndhi ko Belgium ki sarkar ne puraskrit kiya hai, aur isme unhone wahan ke samvidhaan ke prati yadi nishtha dikhaaee hai, to mujhe yeh mahaj ek kanooni baat lagati hai aur meri samajh se ise koi bada mudda nahin banan chahiye.
magar naveen chawla par jab oongliyan uth chunki thi to phi unhe mukhya nyayadhees ke pad per bithana thoda galat lagta hai. yeh ek aisa pad hai jise bedaag rakhna nihayat hi jarrori tha. jaise raam ne pad ki maryada ke liye Sita ka tyag kiya tha (kripya is udaharan ko doosre pariprekshya me na dekhen)congress ki sarkar ko bhi Naveen chawla ka tyag karna chahiye tha. Varun gandhi par ki gai karyawahi pakshpaat poorn ho sakti hai magar galat nahin. aur yeh ek sahi sandesh hai ki sarwajanic jeevan me log sanyam rakhen. loktantra ka matlab kuchh bhi bolne ki azaadi nahin hai, iske saath ek jimmedaari ka hbav hona chahiye.
Varun is prakarn se sabak len.wo yuva hain aur unhe ek lambi paari khelni hai is liye unhe yeh prakarn aur jimmewar aur samajhdar banaye.

Aapka post mujhe achchha laga. yeh bebaak bola gaya such hai jo samsaamayik aur prasangik hai
dhanyawaad.