शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

चुनाव का पहला चरण- उत्तर प्रदेश

छिटपुट नक्सली हिंसा के बीच 15 वीं लोकसभा के लिए पहले दौर का मतदान खत्म हो चुका है। चुनाव का पहला दौर पूर्वी उत्तर प्रदेश के सिर्फ 16 संसदीय क्षेत्रों के लिए था। जिसमें 271 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला मतदाताओं ने किया। इनमें से चुने जाने हैं सिर्फ सोलह। इक्का दुक्का निर्दलीय भले जीत जाएं लेकिन ज्यादातर सीटों पर मुख्य मुकाबला समाजवाद पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में ही रहा। लेकिन लगभग सभी सीटों पर त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय संघर्ष ही देखा गया। कहीं तीसरे कोण पर भाजपा थी तो कहीं कांग्रेस। लेकिन 16 में से कम से कम 10 सीटें बसपा और सपा के बीच ही बंटेगी। दो चार ज्यादा भी हो सकती है। वाराणसी और गोरखपुर में भाजपा को उम्मीद ज्यादा है। कांग्रेस के बारे में कोई निश्चित संभावना नहीं व्यक्त की जा सकती। उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस जीतने के लिए लड़ भी नहीं है। उसकी निगाह 2014 के लोकसभा चुनाव पर है। यह चुनाव वो इसलिए लड़ रही है कि कम से कम प्रदेश के कोने-कोने तक उसका संदेश पहुंचे। लगभग खत्म हो चुके संगठनात्मक ढांचे को प्रणवायु मिले और उसे समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी क्षेत्रीय पार्टियों की बैसाखी की जरूरत न पड़े। इसलिए कांग्रेस के मतो में कुछ प्रतिशत का इजाफा होगा तो वह इतने से संतुष्ट रहेगी।
कल्याण सिंह से दोस्ती करते समय मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की लोकप्रियता का लाभ उठाना और भाजपा को गहरी चोट पहुंचाना उनका मकसद है। इस तरह मुलायम सिंह एक सांप्रदायिक नेता की सहायता एक तथाकथित सांप्रदायिक पार्टी भाजपा को नेस्तनाबूद करने का सपना आखों में पाले हुए इस चुनाव में कूदे थे। पहले दौर के इस चुनाव में कल्याण सिंह की लोकप्रियता कसौटी पर कसी गई है। ये कितनी खरी उतरी है इसका पता परिणाम आने के बाद ही चलेगा। इस बात का भी परिणाम सामने आएगा कि कल्याण सिंह से हाथ मिलाने का कितना असर मुलायम सिंह के मुस्लिम वोटों पर पड़ेगा। किसने प्रतिशत मुस्लिम वोट कांग्रेस और बसपा के खाते में गए हैं।
प्रदेश की मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमों ने एक तरफ माफिया डॉन मुख्तार को पार्टी का वाराणसी से उम्मीदवार बनाया और दूसरी तरफ वाराणसी की ही सभा में उन्होंने मुख्तार को क्लीन चिट दी। उन्होंने साफ कहा कि मुख्तार अंसारी अपराधी नहीं है। मायावती की धारणा है कि मुख्तार का व्यापक प्रभाव पूर्वी उत्तर प्रदेश के मुसलमानों पर है। इसका लाभ उन्हें पूर्वांचल में मिलेगा।
यह चुनाव यह स्पष्ट करेगा कि जिन 16 सीटों के लिए मतदान हुआ है उनपर बसपा को कितने प्रतिशत मुस्लिम मतों का लाभ मिला है। मुख्तार अंसारी ने सिर्फ अपने संसदीय सीट वाराणसी में ही मुसलमानों को अपने पक्ष में किया है या अन्य सीटों पर भी बसपा को मिलने वाले मुस्लिम मतों में इजाफा हुआ है। मायावती ने भाजपा के फायरब्रांड युवा नेता। वरुण गांधी पर रासुका लगाकर जेल में डाल दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के परिणाम स्वरुप वरुण पेरोल पर जेल से बाहर आ गए। इससे मायावती की जबरदस्त किरकिरी हुई और वरुण गांधी के प्रति मतदाताओं के मन में सहानुभूति का ज्वार उमड़ा है। भाजपा नेताओं के साथ ही राजनीति के विश्लेषकों का भी कहना है कि वरुण की बेवजह गिरफ्तारी और उनपर रासुका तामील करने का लाभ भाजपा को भी मिलेगा।
वरुण गांधी की पीलीभीत में भारी मतों से जीत तो तय है ही। उनकी मां मेनका गांधी भी आंवला संसदीय क्षेत्र से जीत जाएंगी। देखने की बात ये होगी कि पहले चरण में यूपी की जिन 16 सीटों पर मतदान हुआ उनमें भाजपा को इसका कितना लाभ मिला। मतदान स्थलों का दौरा करने वाले कुछ पत्रकारों को भाजपा की स्थिति में सुधार अवश्य देखने को मिला। लेकिन इसका निर्णायक प्रभाव किस हद तक पड़ेगा इसका पता तो मतों की गिनती के बाद ही लगेगा। वैसे भाजपा उत्तर प्रदेश की 16 सीटों पर अपनी स्थिति मजबूत बता रही है।
इतना तो तय है कि बसपा की लोकप्रियता इस चुनाव में वैसी नहीं रह गई है जैसी विधानसभा के चुनाव में थी। वरुण गांधी को रासुका में निरुद्ध करने का नकारात्मक प्रभाव तो उस पर पड़ा ही है। भदोही विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में पराजय की खीझ सिर्फ दो ब्राह्मण नेताओं पर उतारने का प्रतिकूल असर भी ब्राह्मण मतदाताओं पर पड़ा है। पहले चरण के मतदान में ब्राह्मण मतदाताओं का रुझान भाजपा की तरफ देखने में आया है। जौनपुर संसदीय क्षेत्र से इंडियन जस्टिस पार्टी के उम्मीदवार बहादुर सोनकर की हत्या का असर कम से कम सजातीय मतों पर तो पड़ा ही है। पुलिस भले ही इसे आत्महत्या बता रही हो। लेकिन स्थानीय लोग इसपर यकीन नहीं कर रहे। उनका पक्का विश्वास है कि उनकी हत्या की गई है और इसे अंजाम दिया है बसपा प्रत्याशी धनंजय सिंह के गुर्गों ने। क्योंकि सोनकर उन्हें ही क्षति पहुंचा रहे थे। इसके बावजूद बसपा की स्थिति अन्य पार्टियों के मुकाबले अच्छी दिखी। आजमगढ़ अकबर अहमद डंपी पिछले उपचुनाव के नतीजे दोहरा सकते हैं।
माना जा रहा है कि उंट किसी भी करवट बैठ सकता है।

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