स्विस बैंकों में जिन देशों का काला धन जमा है। उनमें भारत सबसे उपर है। स्विस बैंकिंग एसोसिएशन की 2006 की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीयों के 735 खरब रुपए स्विस बैंकों में जमा हैं। इसके बाद रुस (4.7 खरब डॉलर), ब्रिटेन (3.9 खरब डॉलर), यूक्रेन (1 खरब डॉलर) औऱ चीन 96 अरब डॉलर का नंबर आता है।
यूरोपीय यूनियन और अमेरिका के भारी विरोध के कारण स्विटजरलैंड इस बात पर राजी हुआ है कि वह अपने यहां के बैंकों की गोपनीयता उजागर करेगा। उसने यह भी कहा है कि वह टैक्स चोरी करने वाले विदेशियों को नहीं बचाएगा। जिन भारतीयों ने पिछले साठ सालों में स्विस बैंकों में अकूत काला धन जमा किया है। उनमें राजनेता व्यवसायी, नौकरशाह और माफिया शामिल हैं। भारतीयों की जो धनराशी स्विस बैंकों के गोपनीय खातों में जमा है वो हमारे बजट का आठ गुना और विदेशी कर्ज का 13 गुना है। इसे 42 करोड़ भारतीयों के बीच एक एक लाख रुपए बांटा जा सकता है। यह धन भारतीय जनता की गाढ़ी कमाई और लूट का है।
राजीव गांधी ने एक बार कहा था कि देश के विकास कार्यों में खर्च के लिए एक रुपया दिया जाता है तो उसमें से 15 पैसा ही इस्तेमाल में आता है। बाकी पैसा भ्रष्टाचारियों की जेब में चला जाता है। लूट की यही रकम स्विस बैंकों में जमा हैं। बाबा रामदेव ने देश के बेईमान औऱ भ्रष्ट लोगों के इस काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने की मांग की है। विपक्ष के कुछ नेताओं ने उन भारतीयों के नाम सार्वजनिक किए जाने की मांग सरकार से की है। जिनकी काली कमाई स्विस बैंकों में जमा है।
भारतीय जनता पार्टी ने इसे चुनावी मुद्दा बनाने का निश्चय किया है यह उसके घोषणा पत्र से जाहिर होता है। भाजपा के मुताबिक आजादी के बाद देश में सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस का ही शासन रहा है इसलिए सर्वाधिक काला धन उसी के शासन काल में स्विस बैंकों में जमा हुआ। बीच बीच में देश के काले धन को सार्वजनिक करने की मांग उठती रही है। लेकिन तत्कालीन सरकारों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने मांग की थी कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जी-20 सम्मेलन में भारतीयो के काले धन का मुद्दा उठाना चाहिए। वे जनता को आश्वासन देते हैं कि यदि भाजपा सरकार सत्ता में आई तो स्विस बैंकों में जमा काला धन स्वदेश लाएगी। इस बारे में कानूनी और आधिकारिक स्तर पर कार्रवाई की जाएगी। भारतीय नागरिकों को मजबूर कर दिया जाएगा कि वे काले धन को अपने देश में लाएं।
आडवाणी ने कहा कि 2007 में भारतीयों के स्विस बैंको में 285 लाख करोड़ रुपए जमा थे। इसे यदि देश में लाया गया होता तो विकास की कई जरुरते पूरी हो सकती थी। उन्होंने विदेशों में जमा धन को आतंक, अपराध और काला धन का गठजोड़ बताया। कहा कि हमें इससे निपटने के लिए साहस और सूझबूझ के साथ आगे बढ़ना है। आडवाणी ने कहा कि चुनाव आयोग को सभी उम्मीदवारों से हलफनामा दायर करवाना चाहिए जिसमें वे विदेशों में जमा धन का खुलासा करें।
स्विस बैंकों की एक खूबी यह है कि वे ग्राहकों के खातों के स्टेटमेंट की जगह खाताधारकों के नामों की जगह नंबरों और कोड का इस्तेमाल करते हैं। यदि यह स्टेटमेंट किसी के हाथ लग भी जाए तो पता नहीं चल सकता कि खाता धारक कौन है।
विश्व भर के व्यापारी और राजनेता स्विस बैंकों की इस गोपनीयता का गलत फायदा उठा रहे हैं। मजे की बात तो यह है कि पूंजीवादी देशों के काले धन तो स्विस बैंकों में हैं ही स्वयं को ईमानदार बताने वाले रुस और चीन के बाशिंदो के खाते भी हैं।
वैश्विक आर्थिक मंदी से निपटने के लिए अमेरिका ने स्वस बैंकों मे जमा अपने देश के लोगों की अकूत दौलत वापस लाने का निश्चय किया और स्विस सरकार पर दबाव बनाया। उसने स्विटजरलैंड को काली सूची में डालने की धमक भी दी । इसके बाद ही स्विस सरकार ने स्विस बैंकों की गोपनीयता को दूर करने का संकेत दिया है। यूरोपीय औऱ पश्चिमी सरकारों के अलावा भारत सरकार ने भी इस दिशा में वैधानिक कार्रवाई शुरु कर दी है।
लेकिन भाजपा को यह मुद्दा चुनाव हथियार के रुप में कारगर लगा। बहरहाल हम बता दें कि स्विटजरलैंड की अर्थव्यवस्था मुख्य रुप से अपने यहां के बैंकों में जमा काले धन और पर्यटन पर ही निर्भर है। जिस दिन उसके बैंकों से दुनिया भर के लोगों का जमा काला धन निकल जाएगा उस दिन उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। तो क्या वह स्विस बैंकों में धन जमा करने वाले के नाम सार्वजनिक कर अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार लेगा?
विश्वभर के उद्योगपतियों, राजनेताओं और अपराधियों ने स्विटजरलैंड की गोपनीय बैंकिंग प्रणाली के कारण ही वहां के बैंकों में धन जमा किया है। स्विस सरकार इससे कोई मतलब नहीं है कि जो धन उसके बैकों में जमा किया जा रहा है वह कर चोर का है या लूट और बेईमानी का। आमतौर पर कोई बैंक यह पता लगाने की कोशिश नहीं करता है कि खाता धारक जो धन अपने खाते में जमा कर रहा है उसका स्त्रोत क्या है। यह कार्य बैंकिंग प्रणाली के दायरे के बाहर है। फिर स्विस सरकार को कैसे बाध्य किया जा सकता है कि वह अपने बैंकों के खाताधारकों की फेहरिस्त संबंध देशों की सरकारों को दे।
कोई भी खाताधारक अपना धन बैंक की विश्वसनीयता के मद्देनजर ही जमा करता है। वास्तव में जो सरकारें स्विटजरलैंड पर गोपनीयता भंग करने का दबाव डाल रही है। उनके देश के जिन प्रभावशाली लोगों के गोपनीय खाते स्विस बैंकों में हैं उनमें बड़े-बड़े राजनेता और उद्योगपति भी हैं। इन लोगों का अपने देश की सरकार में घुसपैठ भी है और प्रभाव भी। इसी तरह बड़े –बड़े उद्योगपतियों के बल पर वहां की सरकारें टिकी हुई हैं।
अमेरिका सरकार में तो कई ऐसे मंत्री हैं जिनके बड़े-बड़े उद्योग भी हैं। वहां कानून बनाने और बिगाड़ने में इन उद्योगपतियों का खासा दखल होता है। जिस नौकरशाही के भरोसे सरकारें चलती हैं उनकी काली कमाई का बड़ा हिस्सा स्विस बैंकों में जमा है। मकसद यह कि स्विस बैंको से काला धन वापस लाना इतना आसान नहीं है जितना समझा जा रहा है। स्विटजरलैंड की सरकार भी इस मामले में फूंक फूंक कर कदम रखेगी।
संभावना है कि खाताधारक देशों की सरकारों और स्विस सरकार के बीच लंबी और कई दौर की बातचीत के बाद ही कोई ऐसा हल निकलेगा जिससे स्विटजरलैंड की अर्थव्यवस्था भी महफूज रहे औऱ स्विस बैंकों से कालाधन भी बाहर आए। एक रास्ता यह भी हो सकता है कि सरकारें अपने देश के उद्योगपतियों और राजनेताओं को इस बात के लिए राजी करें। एक ऐसा वातावरण बने जिसमें कालाधन जमा करने वाले भी अपने आपको सुरक्षित महसूस करें।
जहां तक लोकसभा के चुनाव का सवाल है तो भाजपा इस सवाल को जोरशोर से जनता के बीच ले जाने की तैयारी में है। वह अच्छी तरह जानती है कि जनता समस्या की जटिलता जाने बगैर भावात्मक रुप से स्विस बैंकों में जमा काले धन के खिलाफ उसके साथ होगी।
सोमवार, 6 अप्रैल 2009
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6 टिप्पणियां:
एक वरिष्ट पत्रकार को यहां देख कर बहुत उत्साहवर्धन हुआ । प्रणाम
बच्चन जी,
आपका हिन्दी चिट्ठाकारी में अभिनन्दन है!
स्विट्जरलैण्ड को दुनिया के गरीब देशों ने ही 'स्वर्ग' बना के रखा है। अपनेपने देश में लूटते हैं; स्विट्जरलैण्ड में ले जाकर या तो उसे जमा करते हैं नहीं तो उसे विलासिता पर पानी के भाव लुटा आते हैं। ऐसा केवल बड़े-बड़े लुटेरे ही नहीं करते बल्कि छोटे-छोटे लुटेरे भी करते हैं।
यदि यह धन भारत आ जाय तो तेजी से विश्व समुदाय में आगबढ़ते भारत के लिये वरदान साबित होगा।
सत्ताधारी कांग्रेस की इस पर चुप्पी बहुत अखर रही है।
स्वागत है बच्चन सिंह जी, आप हमें अपने अनुभवों की दौलत से मालामाल करें. आपका ब्लॉग जगत में बहुत-बहुत स्वागत है!
कथनी और करनी में अंतर होता है। भाजपा या उससे जुड़े लोग स्विस बैंकों से अछूते होंगे; इसकी कल्पना करना भी बेमानी है।
बहुत सुंदर विश्लेषणात्मक आलेख लिखा .. अच्छी जानकारी मिली ... धन्यवाद।
ब्लॉग की दुनिया में मेरे प्रवेश पर आप सभी ने मेरा स्वागत किया है। इसके लिए मैं आपसब का अभारी हूं। और विश्वास व्यक्त करता हूं कि इसी तरह मेरा उत्साह वर्धन होता रहेगा।
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