बुधवार, 8 अप्रैल 2009

शरद पवार की महत्वाकांक्षा

राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के नेता और केंद्र सरकार में कृषि मंत्री शरद पवार का कहना है मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद के लिए यूपीए के उम्मीदवार नहीं, कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। यूपीए तो अपना नेता चुनाव आने के बाद चुनेगा। अभी तो यूपीए के कई घटक दल अलग अलग चुनाव लड़ रह रहे हैं।

यह देखा जाना बाकी है कि कौन पार्टी यूपीए में शामिल होती है और कौन राजग में। पवार ने अपनी पार्टी का घोषणापत्र जारी किया जिसमे कहा गया है कि सत्ता में आने के बाद कानून में परिवर्तन किया जाएगा। ताकि प्रधानमंत्री पद पर चुना गया व्यक्ति पांच साल तक बना रहे। इस व्यवस्था का संकेत साफ है कि यदि शरद पवार प्रधानमंत्री चुने गए तो पांच साल तक फिर कुर्सी पर बने रहेंगे। पवार ने आशा व्यक्त की है कि अगली सरकार केंद्र में यूपीए की ही बनेगी।

शरद पवार तीसरे मोर्चे के संपर्क में हैं। मोर्चे के नेता माकपा के महासचिव प्रकाश करात से उनकी बातचीत चलती रहती है। प्रकाश करात ने जबसे उन्हें प्रधानमंत्री पद का लॉलीपाप पकड़ाया है तबसे वो मगन है। चुनाव परिणाम यदि तीसरे मोर्चे को सत्ता के समीप ले जाते हैं तो पवार को इस मोर्चे के साथ होने में देर नहीं लगेगी। प्रकाश करात तीसरे मोर्चे को सुदृढ करने या कांग्रेस का खेल बिगाड़ने के लिए तुरूप के पत्ते चल रहे हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती के दिल में भी प्रधानमंत्री बनने का बीज डाल दिया है जो धीरे धीरे अंकुरित होने लगा है।

उत्तर प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ने की मायावती की घोषणा से यद्यपि तीसरा मोर्चा निराश हुआ है। लेकिन उसे यह उम्मीद तो है ही कि यूपीए का विकल्प बनने में मायावती महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं। वैसे मायावती ने ये मान लिया है कि उनके सितारे उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जरुर बिठाएंगे।

शरद पवार तो इतने आश्वस्त हैं कि उन्होंने गुजरात में कांग्रेस से चुनावी समझौता तोड़ दिया है। गुजरात की सीमाएं महाराष्ट्र से लगती हैं, इसलिए शरद पवार मान बैठे हैं कि गुजरात में उनका प्रभाव कांग्रेस से कई गुना ज्यादा है। गुजरात में यदि उनकी पार्टी अच्छा प्रदर्शन करती है तो उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावनाए बढ़ जाएंगी क्योंकि तीसरे मोर्चे का समर्थन तो मिलेगा ही।

उड़ीसा में बीजू जनता दल के तीसरे मोर्चे के साथ होने से शरद पवार का हौसला और बढ़ा है। वहां नवीन पटनायक की सरकार वामपंथियों की बैसाखी पर ही टिकी है क्योंकि लोकसभा चुनाव में नवीन पटनायक की पार्टी और भाजपा में चुनावी समझौता न होने पर भाजपा पटनायक सरकार से बाहर हो गई और लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला कर लिया। भाजपा को उम्मीद है कि वह उड़ीसा में कर्नाटक की स्थिति दुहराएगी। इसमें दो राय नहीं कि संघ और विहिप की कोशिश से उड़ीसा के आदिवासी इलाकों भाजपा की स्थित पहले की अपेक्षा मजबूत हुई है। लेकिन नवीन पटनायक इतने भी कमजोर नहीं है कि उड़ीसा से उनका बोरिया बिस्तर ही गोल हो जाए। बहरहाल भाजपा ने एक दांव चला है जो उसके उलट भी पड़ सकता है और पक्ष में भी पड़ सकता है।

लेकिन शरद पवार दो नावों पर पैर जरुर रखे हुए हैं। वो हाल ही में उड़ीसा में आयोजित तीसरे मोर्चे की रैली में उन्होंने फोन से भाषण दिया था। सफाई ये दी थी कि ये रैली तीसरे मोर्चे की नहीं बल्कि बीजद की थी। हांलाकि रैली तो वास्तव में तीसरे मोर्चे की ही थी। पवार की सफाई कांग्रेस को भ्रम में रखने की चाल थी।

कांग्रेस को यकीन है कि चुनाव के बाद यदि तीसरे मोर्चे को अपेक्षित परिणाम नहीं हासिल होगा तो राजग को सत्ता में आने से रोकने के लिए भाकपा या तो यूपीए में शामिल हो जाएगी या बाहर से समर्थन देगी। उसके साथ के छोटे छोटे क्षेत्रीय दल भी यूपीए में शामिल हो जाएंगे। कांग्रेस को यह भी विश्वास है कि यूपीए में सबसे बड़ा दल होने की वजह से उसके द्वारा प्रस्तावित व्यक्ति प्रधानमंत्री पद पर चुन लिया जाएगा।

लेकिन कांग्रेस को शायद इस बात का एहसास नहीं है कि यहीं से प्रकाश करात, शरद पवार, नवीन पटनायक और तीसरे मोर्चे के अन्य नेताओं का खेल शुरु हो जाएगा। माकपा किसी कीमत पर नहीं चाहेगी कि घोर अमेरिका परस्त मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। वह इस पद के लिए भी शरद पवार का नाम उछाल देगी। जिसरे तीसरे मोर्चे के सांसदों का समर्थन तो मिलेगा ही कांग्रेस में शरद पवार के समर्थकों का भी समर्थन मिलेगा। शरद पवार का यह बयान इसी राजनीतिक गणित पर आधारित है कि डॉक्टर मनमोहन सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं यूपीए के नहीं।

माकपा का पूरा प्रयास होगा मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद पर आसान होने से रोकने का। इसके लिए उसे शरद पवार से उपयुक्त कोई दूसरा उम्मीदवार नहीं मिल सकता है जो कांग्रेस में भी सेंधमारी की क्षमता रखता हो। माकपा प्रधानमंत्री पद के चुनाव में खड़मंडल पैदा करने के इरादे से ही यूपीए में शामिल हो सकती है। विभिन्न राज्यों में कांग्रेस की स्थिति देखते हुए माकपा की इस धारणा को बल मिलता है कि मनमोहन सिंह को फिर प्रधानमंत्री बनाने से रोकने के लिए कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी पर दबाव बनाया जा सकता है। यदि मनमोहन सिंह की जगह दूसरा कोई प्रधानमंत्री हुआ तो सरकार को अमेरिका की अपेक्षा रुस की तरफ आसानी से झुकाया जा सकता है। जैसा जवाहर लाल नेहरू या इंदिरा गांधी के जमाने में था।

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

आपने सही बताया / Mr. Pawar का पवर पॉलिटिक्स को आपने अच्छी तरसे विमर्श किया...... दान्यवाद /

आप कौनसी हिन्दी टाइपिंग टूल यूज़ करते हे..? मे रीसेंट्ली यूज़र फ्रेंड्ली इंडियन लॅंग्वेज टाइपिंग टूल केलिए सर्च कर रहा था तो मूज़े मिला.... " क्विलपॅड " / ये बहुत आसान हे और यूज़र फ्रेंड्ली भी हे / इसमे तो 9 भारतीया भाषा हे और रिच टेक्स्ट एडिटर भी हे / आप भी " क्विलपॅड " www.quillpad.in यूज़ करते हे क्या...?

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

पवार का क्या कसूर, उम्र ढल गयी है...कौन जाने अगला चुनाव देखें, देखें, न भी देखें.... जो फसल पूरी ज़िन्दगी बोई...काट नहीं लेनी चाहिए ?

@Santhosh
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